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________________ REFFEE IFE 19 धरणेन्द्र-पद्मावती इसप्रकार भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति करके वापिस चले गये। भगवान पार्श्वनाथ के जीवन दर्शन को समझने के लिए और उनसे प्रेरणा पाने के लिए, उन जैसा बनने | के लिए हमें उनके कुछ महत्त्वपूर्ण पूर्व भवों को देखना होगा। उनके पूर्व भवों का परिचय कराते हुए आचार्य गुणभद्र लिखते हैं; चतुर्थ काल में पोदनपुर में राजा अरविन्द्र हुए। उनके मंत्री के दो पुत्र थे। ज्येष्ठ पुत्र कमठ और उसका अनुज मरुभूति । यह मरुभूति ही आगे आठ भवों के बाद पार्श्वनाथ हुए हैं। | कमठ क्रोधी और दुराचारी था और मरुभूति शान्त एवं सरल । क्रोध से जीवों को कितन अहित होता और शान्ति एवं सद्गुणों से प्राणी कितने सुखी होते हैं। यह बात हम कमठ और मरुभूति के चरित्र से सीख | सकते हैं। कमठ और मरुभूति के पिता तो सिर के श्वेत बाल देखकर राज्यमंत्री के पद से त्याग-पत्र देकर मुनि हो गये । राजा अरविन्द ने मंत्री के छोटे पुत्र को शान्त एवं सद्गुणी देखकर अपना मंत्री बना लिया। इस बात से कमठ अपने छोटे भाई मरुभूति से ईर्ष्या करने लगा। एक बार राजा अरविन्द किसी दूसरे राजा से युद्ध करने गये तो अपने नव नियुक्त मंत्री मरुभूति को भी साथ ले गये । राजा और मंत्री दोनों की अनुपस्थिति में दुष्ट कमठ ऐसा बर्ताव करने लगा, मानो वही राजा हो। राजा का अधिकार दिखाकर प्रजा को परेशान करने लगा। छोटे भाई मंत्री मरुभूति की पत्नी अति सुन्दर थी, उसे देखकर कमठ उस पर मोहित तो था ही, वह कामातुर हो उठा। उसने उसे कपटपूर्वक फुलबाड़ी में बुला कर उसके साथ बलात्कार किया। कुछ दिन बाद राजा अरविन्द्र युद्ध का भार मंत्री मरुभूति को सौंपकर स्वयं पोदनपुर लौट आये। वहाँ लोगों के मुँह से जब कमठ के दुराचार की कथा सुनी तब उन्हें विचार आया कि ऐसे अन्यायी दुराचारी का हमारे राज्य में रहना उचित नहीं है। उन्होंने उसका सिर मुंडाकर काला मुँह करके गधे पर बैठाकर नगर से बाहर निकलवा दिया। पापी कमठ की ऐसी दुर्दशा देखकर नगरवासी कहने लगे कि “देखो, पापी जीव | अपने पाप का कैसा फल भोग रहा है, इसलिए पापों से दूर रहो।" EFF २२
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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