________________
BREE
F
(२७४ | प्राणों की रक्षा की भावना से द्वारिका से वन में जाकर उनसे दूर भाग रहा था ताकि वह तीर्थंकर नेमिनाथ
की घोषणा के अनुसार अपने भाई की मौत का कारण न बने। उसी जरतकुमार का तीर भ्रमवश उनके मौत का कारण बन गया। श्रीकृष्ण ने कहा “यही तो विधि की विडम्बना है, जिसे अज्ञानी जीव समझ नहीं पाते और अपने कर्तृत्व के अहंकार में संसारचक्र में फंसे रहते हैं। भाई! शोक मत करो 'होनहार अलंघनीय है और करनी का फल तो भोगना ही पड़ता है। कभी किसी को हमने सताया होगा, चलो ठीक है, कर्ज चुक गया मरना तो था ही, अब ऐसी भूल की पुनरावृत्ति न हो यह भावना भा लें। देखो, जो श्रीकृष्ण और बलदेव, जीवन भर तो क्या आज भी अपने सत्कर्मों से, देश और समाज की सेवा से, दीन-दुखियों की पीड़ा को समझने और उसे दूर करने से भगवान बनकर पुज रहे हैं। वैभव में अर्द्धचक्री, अपार शक्ति सम्पन्न, महाभारत में अन्याय के विरुद्ध सत्य का साथ देकर विजय दिखानेवाले थे; उनके जन्म और मृत्यु | की कहानी हमें स्पष्ट संदेश दे रही है कि -
करम फल भुगतहिं जाय टरै। पार्श्वनाथ तीर्थंकर ऊपर कमठ उपसर्ग करे। एक वर्ष तक आदि तीर्थंकर बिन आहार रहे। रामचन्द्र चौदह वर्षों तक वन-वन जाय फिरें।
___ करम फल भुगतहिं जाय टरै ।।१।। कृष्ण सरीखे जगत मान्य जन, परहित जिये-मरे । फिर भी भूलचूक से जो जन करनी यथा करे ।। उसके कारण प्राप्त कर्मफल, भुगतहि जाय झरैं।
करम फल भुगतहिं जाय टरै ।।२।। जनम जैल में शरण ग्वालघर, बृज में जाय छिपे । जिनके राजकाज जीवन में, दूध की नदी बहे ।।
IFE 19
4
EF
२१