________________
(२७१
sts च 1 at 1 अप्र
इसीप्रकार जरतकुमार को भी ज्ञात हो गया था कि मेरे निमित्त से श्रीकृष्ण की मृत्यु होगी; अत: वह भी दुःखी हुआ और भाई-बन्धुओं को छोड़कर ऐसी जगह चला गया, जहाँ श्रीकृष्ण के दर्शन ही न हों।
परन्तु यह अटल नियम है कि होनी को कोई टाल नहीं सकता, जब, जिसके निमित्त से जो होना है, वही, तभी, उसी के निमित्त से होकर रहता है, उसे इन्द्र और जिनेन्द्र भी आगे पीछे नहीं कर सकते ।
लाखों प्रयत्न करने पर भी दोनों घटनायें हुईं। द्वारिका द्वीपायन मुनि के निमित्त से ही जली और श्रीकृष्ण का निधन जरतकुमार के बाण से ही हुआ ।
यद्यपि श्रीकृष्ण ने द्वारिका में पूर्ण शराबबन्दी करा दी थी। जो शराब तैयार थी, उसे भी जंगलों में दूरदूर तक फैंक दिया था; परन्तु वह फैंकी हुई शराब पत्थरों के कुण्डों में पड़ी पड़ी ज्यों-ज्यों पुरानी पड़ी त्यों-त्यों अधिक मादक होती गई।
श्रीकृष्ण ने यह भी घोषणा करा दी कि जिनेन्द्र के वचन अन्यथा नहीं होते; अतः जो विरागी होकर आत्मा के कल्याण में लगना चाहें, मुनि होकर मोक्षमार्ग में अग्रसर होना चाहें वे खुशी-खुशी जा सकते हैं; परन्तु जो भव्य सम्यग्दृष्टि थे, जिनेन्द्र की वाणी में विश्वास करते थे, वे तो मुनि होकर मोक्षमार्ग साधने | लगे और जो मिथ्यादृष्टि थे, कर्तृत्वबुद्धि से ग्रसित थे, वे उन कारणों को दूर करने का प्रयत्न करने लगे । उन्होंने सोचा - 'न रहे बांस न बजे बांसरी' अतः द्वीपायन को ही खत्म कर दो और जो शराब निमित्त बनने वाली है, उसे ही जंगलों में फिकवा दी जाये, जब कारण ही नहीं रहेगा तो द्वारिका भस्म होने का कार्य कहाँ से होगा ? परन्तु द्वीपायन लोंड़ का महीना ( अधिक माह ) गिनना भूल जाने से बारहवें वर्ष में ही द्वारिका के जंगल में जा पहुँचे। उधर उसीसमय वनक्रीड़ा को आये शम्ब आदि कुमारों ने जंगल के कुण्डों | में पड़ी मादक शराब पी ली, जिससे वे उन्मत्त हो गये। उन्होंने द्वीपायन को पहचान लिया और उसे मारने | की चेष्टा करने लगे। इससे वे क्रोधित हो उठे। यह बात कृष्ण और बलदेव को मालूम हुई तो उन्होंने द्वीपायन | को शान्त करने की बहुत कोशिश की; किन्तु वे शान्त नहीं हुए । क्रोध में उनका शरीर जलकर भस्म हो
ती
र्थं
क
मि
ना
थ
पर्व २१