________________
REFFEE IFE 19
|| सृष्टि अहेतुक है अर्थात् किसी के द्वारा उत्पन्न नहीं हुई है, किसी ने इसे बनाया नहीं है। परिणामिकी हैं - || स्वत:सिद्ध है। जीव स्वयं कर्म करता है, स्वयं उसका फल भोगता है, स्वयं अपनी भूल से संसार में घूमता ला || है और स्वयं भूल सुधार कर मुक्त होता है।
इसप्रकार नेमि जिनेन्द्र के द्वारा कहा हुआ निर्मल मोक्षमार्ग तथा लोक का स्वरूप सुनकर बारह सभाओं के जीवों ने भगवान को नमन कर वन्दना की। श्रोताओं में से कितने ही लोगों ने सम्यग्दर्शन प्राप्त किया, कितने ही लोगों ने संयमासंयम एवं मुनिव्रत धारण कर आत्मकल्याण किया। | शिला देवी, रोहणी, देवकी, रुक्मणी तथा अन्य नारियों ने श्राविकाओं का चारित्र धारण किया।
तीर्थंकर नेमि जिनेन्द्र भव्य जीवों को प्रबोधित करते हुए नाना देशों में बड़े-बड़े राजाओं को धर्म में स्थिर करते हुए चिरकाल तक विहार कर भगवान पुन: गिरनार पर्वत पर वापस लौट आये।। | बलदेव के मन में यह प्रश्न हुआ - "मैं यह जानना चाहता हूँ कि द्वारिका का विनाश कब और किसके
द्वारा होगा ? श्रीकृष्ण की मुत्यु का निमित्त कारण कौन बनेगा ? __हे प्रभो ! मेरा राग कृष्ण के प्रति बहुत है, मुझे यह मोह कम होकर संयम की प्राप्ति कब होगी ? | ती
नेमि जिनेन्द्र की दिव्यध्वनि में आया - "हे बलदेव ! ये द्वारिकापुरी बारहवें वर्ष में मदिरा के निमित्त से द्वीपायन मुनि के द्वारा क्रोधवश भस्म होगी। श्रीकृष्ण अपने अन्तिम समय में कौशाम्बी के वन में शयन करेंगे और जरतकुमार उनके विनाश में निमित्त बनेंगे। अन्तरंग कारण के रहते हुए बाह्य हेतु, कुछ न कुछ तो होता ही है - ऐसा ज्ञानी जानते हैं; अत: वे हर्ष-विषाद नहीं करते।
हे बलदेव ! संसार के दुःखों से भयभीत आपको भी उसीसमय कृष्ण की मृत्यु का निमित्त पाकर तप की प्राप्ति होगी तथा तपकर आप ब्रह्म स्वर्ग में उत्पन्न होंगे।"
भगवान नेमीनाथ की दिव्यध्वनि की घोषणा से द्वीपायन ने जाना कि द्वारिका मेरे कारण जलेगी तो, वे संसार से विरक्त होकर मुनि होकर वनमें जाकर तप करने लगे और उस पाप से बचने के लिए वे बारह वर्ष का समय बचाने के लिए पूर्व दिशा की ओर चले गये।
२१)