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________________ REFFEE IFE 19 वस्त्राभूषणों से विभूषित किया। उत्तम सिंहासन पर विराजमान कर नेमिकुमार को घेरकर खड़े हुए कृष्ण, बलभद्र आदि अनेक राजा सुशोभित हो रहे थे। इन सबने उन्हें रागवश रोका; पर वे रुके नहीं। वे कुबेर द्वारा निर्मित पालकी की ओर आगे बढ़े और बैठ गये। पहले कुछ दूर पृथ्वी पर तो राजाओं ने पालकी उठाई, पश्चात् देवगण आकाशमार्ग से गिरनार पर्वत पर ले गये। वहाँ नेमिनाथ ने पालकी का त्यागकर शिलातल पर विराजमान होकर पंचमुष्ठि केशलोंच किया। उनके साथ गये एक हजार राजाओं ने भी || जिनदीक्षा धारण की। देवेन्द्रों द्वारा विधिवत दीक्षा कल्याणक मनाने के पश्चात् उनके द्वारा मुनिराज नेमिकुमार की स्तुति की गई। स्तुति में उन्होंने कहा - "हे मुनिवर! आप क्रोध और तृष्णा से रहित हैं, निष्काम है, निर्मान हैं। हे मुनि! आप मननशील हैं, आपको हम बारम्बार नमन करते हैं।" । जब मुनिराज आहार लेने के लिए द्वारिकापुरी में आये तब उत्तम तेज के धारक सेठ प्रवरदत्त ने उन्हें खीर का आहार देकर देवों द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्त की। राजमती ने भी नेमिकुमार की विराग परिणति का निमित्त पाकर अपनी परिणति को राग-रंग से हटाकर ज्ञान-ध्यान में लगाने का निश्चय कर लिया। वह सामान्य नारियों की तरह नेमिकुमार के दीक्षित हो जाने से उनके वियोग से दुःखी नहीं हुईं। उन्होंने भी संसार, शरीर और भोगों की क्षणभंगुरता को जानकर तथा संसार के स्वार्थ को जानकर वैराग्य धारण किया और आर्यिका के व्रत अंगीकार कर आत्मसाधना हेतु कठिन तप करने लगी।" "ये स्त्रियाँ स्त्री पर्याय में तीनोंपन की पराधीनता के नाना दुःख उठाती हैं। बचपन में पिता के आधीन, युवावस्था में पति के आधीन और बुढ़ापे में पुत्र के आधीन रहती हैं और पराधीनता में स्वप्न में भी सुख नहीं है। कहा भी है - "पराधीन सपनेहु सुख नाहीं" यदि पति या पुत्र दुर्बल हुआ, बीमार हुआ, अल्प आयु हुआ, मूर्ख हुआ, दुष्ट हुआ तो अनन्त दुःख । यदि सौत हुई तो उसका दुःख, यदि स्वयं बंध्या हुई, ॥२२ + AEF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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