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________________ नामक शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख बजाया और अनावृष्टि ने बलाहक नामक शंख बजाया। शंख नाद होते ही उनकी सेना में युद्ध के प्रति पुन: उत्साह बढ़ गया और शत्रु सेना भयाक्रान्त हो गई। सेनापति अनावृष्टि ने शत्रु के द्वारा रचित सेना के चक्रव्यूह का मध्यभाग, नेमिकुमार ने दक्षिण भाग, अर्जुन ने पश्चिमोत्तर भाग भेद डाला । यद्यपि जरासंध (शत्रु सेना) ने भी अपने पूरे पराक्रम के साथ युद्ध करते हुए समुद्र विजय की सेना का सामना किया; परन्तु वह श्रीकृष्ण और नेमिकुमार के बल एवं पराक्रम के सामने टिक नहीं पाई और तितर-बितर हो गई। नेमिकुमार के अतुल्यबल को सिद्ध करनेवाली एक घटना प्रसिद्ध है - एक दिन युवा नेमिकुमार कुबेर के द्वारा भेजे हुए वस्त्राभूषणों को पहिन कर श्रीकृष्ण के साथ यदुवंशी राजाओं से भरी सभा में गये । राजाओं ने अपने-अपने आसन छोड़कर उन्हें नमस्कार किया। फिर श्रीकृष्ण और नेमिकुमार अपने-अपने आसनों पर बैठ गये। सिंहासन पर बैठे हुए वे दोनों दो इन्द्रों के सदृश सुशोभित हो रहे थे। उस सभा में बलवानों के बल की चर्चा चल पड़ी तब किसी ने अर्जुन की प्रशंसा की तो किसी ने युधिष्ठिर की और किसी ने नकुल, सहदेव, बलभद्र और श्रीकृष्ण के बल की प्रशंसा की। तब बलदेव बोले तुम लोग जो इन सबकी बढ़ाई करते हो सो सब अपने-अपने अनुराग से ऐसा कह रहे हो। वस्तुत: बात यह है कि नेमिकुमार जैसा बल अभी तीन लोक में किसी में नहीं है। ज्ञातव्य है कि - वे तीर्थंकर हैं और तीर्थंकर जन्म से ही अतुल्य बल के धनी होते हैं - ऐसा नियम है। अत: उनके शारीरिक बल से किसी की तुलना नहीं होती; किन्तु श्रीकृष्ण ने नेमिकुमार की बढ़ाई सुनकर कौतूहलवश मुस्कराते हुए उनसे मल्लयुद्ध में बल की परीक्षा करने को कहा। उत्तर में नेमिकुमार ने बहुत ही विनम्र शब्दों में कहा "हे अग्रज! इसमें मल्लयुद्ध की क्या आवश्यकता है? यदि आपको मेरा बल जानना ही है तो लो मेरे पाँव को इस आसन से सरका दो” श्रीकृष्ण द्वारा अपनी शक्ति लगाने पर भी नेमिकुमार का पाँव सरकाना तो दूर रहा, वे पाँव की एक अँगुली को भी हिलाने में | २१) + ERE FB
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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