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________________ समुद्रविजय सबसे बड़े भाई थे और श्रीकृष्ण के पिता राजा वसुदेव सबसे छोटे भाई थे। दस भाइयों में ये | दोनों ही सर्वाधिक प्रभावशाली, धीर-वीर और सर्वगुण सम्पन्न पुराण प्रसिद्ध पुरुष हुए। राजा समुद्र विजय की रानी शिवा देवी से वैशाख शुक्ला त्रयोदशी के दिन शुभ घड़ी में नेमिकुमार का जन्म हुआ। तीर्थंकर नामकर्म के साथ बंधे पुण्यकर्म के प्रभाव से सौधर्म इन्द्र आदि देव-देवेन्द्रों ने उनका विशेष | प्रकार से जन्मोत्सव मनाया। उन्हें सुमेरु पर्वत के शिखर पर ले जाकर हर्षोल्लासपूर्वक १००८ कलशों से क्षीरसागर के निर्मल निर्जन्तुक जल से जन्माभिषेक किया । नेमिकुमार परमशान्त मुद्रा, अत्यन्त सुन्दर शरीर और १००८ शुभलक्षणों से युक्त श्याम वर्ण होते हुए भी अत्यन्त आकर्षक व्यक्तित्व के धनी और अतुल्यबल | के धारक थे। वे जन्म से ही मति-श्रुत-अवधिज्ञान के धारक भी थे। " नेमिकुमार और श्रीकृष्ण सगे चचेरे भाई थे। राजा समुद्र विजय और वसुदेव - दोनों सहोदर न्यायप्रिय, उदार, प्रजावत्सल, धीर-वीर-गंभीर और अत्यन्त रूपवान, बलवान तथा शलाका पुरुषों के जनक थे। यद्यपि नेमिकुमार जन्म से ही वैरागी प्रकृति के थे, फिर भी कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जब एक ओर राजा जरासंध और दूसरी ओर समुद्र विजय की सेनायें अपने-अपने व्यूहचक्र बनाकर युद्ध के लिए तैयार खड़ी थीं, तब उस युद्ध में समुद्रविजय के पक्ष में बलभद्र, श्रीकृष्ण और नेमिकुमार भी युद्ध करने के लिए तैयार थे और इनका सेनापति राजा अनावृष्टि था। इनके विरुद्ध युद्ध करनेवाले राजा जरासंध की ओर सेनापति के रूप में राजा हिरण्यगर्भ था। दोनों ओर की सेनाओं में युद्ध के समय बजने वाली भेरियाँ और शंख गंभीर शब्द करने लगे तथा दोनों ओर की सेना युद्ध करने के लिए परस्पर सामने आ गईं। शत्रु सेना की प्रबलता और अपनी सेना को पीछे हटती देख नेमिकुमार, अर्जुन और अनावृष्टि युद्ध विशारद श्रीकृष्ण का संकेत पाकर स्वयं युद्ध करने को तैयार हो गये और इन्होंने जरासंध के चक्रव्यूह को भेदने का निश्चय कर लिया। नेमिकुमार ने शत्रुओं के हृदय में भय उत्पन्न करने के लिए इन्द्र प्रदत्त शाक + ERE FB
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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