________________
PRIFF TO
भी समर्थ नहीं हो सके। अन्त में उन्होंने उनके बल को न केवल स्वीकार ही किया, वरन् उसकी प्रशंसा | भी की और उनके बल को लोकोत्तर बताया। उसीसमय इन्द्र का आसन कम्पायमान हो गया और उसने | तत्काल देवों के साथ आकर अतुल्यबल के धारक श्री तीर्थंकर नेमिकुमार की स्तुति की। | श्रीकृष्ण भी अपने राज्य के विषय में शंकित होते हुए अपने महल में चले गये। कृष्ण के मन में यह शंका घर कर गई कि नेमिकुमार के बल का कोई पार नहीं है; अत: इनके रहते हुए हमारा राज्य शासन स्थिर एवं नि:शल्य रह सकेगा या नहीं?
उससमय से श्रीकृष्ण बाहरी व्यवहार में तो उत्तम अमूल्य गुणों से युक्त तीर्थंकर के जीव नेमिकुमार की आदरभाव से प्रतिदिन सेवा-सुश्रुषा करते हुए प्रेम प्रदर्शित करने लगे; पर मन में उस शल्य के निवारण का उपाय भी सोचने लगे; एतदर्थ उन्होंने अपनी पत्नियों को नेमिकुमार के साथ वसन्तोत्सव मनाने और उसके माध्यम से उनके विरागी मन में और अधिक वैराग्य उत्पन्न करने तथा उन्हें संसार के स्वार्थीपन का आभास कराने की ओर प्रेरित किया।
मनुष्य की मनोवृत्ति को हरण करनेवाली श्रीकृष्ण की पत्नियाँ पति की आज्ञा पाकर वृक्षों और लताओं | से युक्त रमणीय वनों में बाल तीर्थंकर नेमिकुमार के साथ ऐसा अनुचित व्यवहार करने लगीं, ताकि संसार से उनका मन उचट जाये।।
यद्यपि कुमार नेमि स्वभाव से ही रागरूपी पराग से परान्मुख थे; तथापि श्रीकृष्ण की स्त्रियों के अनुरोध से वे उत्साह के बिना ही वे-मन से जलाशय में जलक्रीड़ा करने लगे।
उन्हें अन्दर से जरा भी रुचि एवं उत्साह नहीं था; परन्तु वे किसी के सामने स्वयं को कमजोर सिद्ध नहीं होने देना चाहते थे; अत: उन्होंने न्याय-नीति की मर्यादा में रहकर जितनी जो क्रीड़ा और मनोरंजन | भाभियों के साथ उचित था, तदनुसार उनके आग्रह का निर्वाह किया। ___ घर जाने पर श्रीकृष्ण को नेमिकुमार के सरल व्यवहार से ऐसा भ्रम हो गया कि अब नेमिकुमार शादी ॥ २१
4 NEFos