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________________ २६० श ला का पु रु pm F F 195 ष उ त्त रा र्द्ध (२१ तीन लोक में सार बताया, वीतराग विज्ञानी को । भव सागर में दुःखी बताया, मिथ्यात्वी अज्ञानी को ।। मुक्तिमार्ग का पथिक बताया, स्व-पर भेदविज्ञानी को । सहज स्वभाव सरलता से सुन ! नेमिनाथ की वाणी को ।। भावी तीर्थंकर नेमिनाथ की पर्याय में आने के पाँच भव पूर्व यही तीर्थंकर का जीव विदेह क्षेत्र में राजा अर्हतदास के घर जिनदत्ता रानी की कूंख से उत्पन्न अपराजित नामक राजकुमार था। वह किसी के द्वारा भी पराजित न होता हुआ अपने नाम को सार्थक कर रहा था । यौवन आने पर प्रीति नाम की सर्वगुण सम्पन्न कन्या से विवाह हुआ । एक दिन राजा अर्हद्दास भगवान विमलवाहन की वन्दनार्थ अपने पुत्र अपराजित सहित गए । भगवान | के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर राजा अर्हद्दास ने अपने अधीनस्थ पाँच सौ राजाओं के साथ भगवान विमलवाहन के समीप जिनदीक्षा ले ली। पिता की दीक्षा के बाद युवराज अपराजित ने राज्यपद संभाला तो; पर साथ ही उन्हें भी भगवान के दिव्य उपदेश से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो गई। एक दिन अपराजित ने सुना कि गन्धमादन पर्वत पर जिनेन्द्र विमलवाहन और पिता अर्हद्दास को मोक्ष प्राप्त हो गया है। यह सुनकर उसने तीन दिन का उपवास कर निर्वाणभक्ति की । एक बार राजा अपराजित कुबेर के द्वारा प्रदत्त जिनप्रतिमा एवं चैत्यालय में विराजमान अर्हत प्रतिमा की पूजा कर एवं उपवास का नियम लेकर मन्दिर में धर्मोपदेश कर रहा था । उसीसमय दो चारण ऋद्धिधारी | मुनि आकाश से नीचे उतरे। राजा अपराजित ने वन्दन कर उनसे पूछा - "हे नाथ ! वैसे तो मुझे जैन साधुओं ती र्थं क र मि ना थ पर्व २१
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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