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________________ २५७ श ला का पु रु pm F ष उ त्त रा र्द्ध बाल-तीर्थंकर नमिकुमार माता-पिता को हर्षित करते हुए दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे थे । प्रभु नमिकुमार जब ढाई हजार वर्ष के हुए तब विजयराजा ने उनका राज्याभिषेक करके मिथिलापुरी का राज्य सौंप दिया । महाराजा नमि ने पाँच हजार वर्ष तक मिथिलापुरी का राजसिंहासन सुशोभित किया। उनके राज्य में प्रजाजन सर्वप्रकार से सुख और धर्मसाधन में तत्पर थे। एक बार वर्षा ऋतु में धरती पर चारों ओर हरियाली छाई हुई थी, मानों रत्नत्रय के उद्यान खिल रहे हों। महाराज नमिकुमार प्रकृति की उस अद्भुत शोभा का अवलोकन करने हेतु हाथी पर बैठकर वन विहार के लिए गये। वन के आल्हादक वातावरण में प्रभु के आत्मज्ञान की ऊर्मियाँ जागृत होने लगीं। विदेहक्षेत्र से आये देवों द्वारा वहाँ के अपराजित तीर्थंकर की बात सुनकर नमिकुमार को जातिस्मरण हो गया । उन्हें अपने पूर्व भव में साथ रहे और विदेह क्षेत्र में तीर्थंकर अपराजित का पूर्व ज्ञान हो गया । | वे विचारने लगे कि "उन प्रभु ने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया और मैं अभी राजभोग में पड़ा हूँ। अब मुझे इसप्रकार समय गंवाना उचित नहीं है। मैं आज ही मुनि व्रत धारण कर केवलज्ञान की साधना करूँगा । " इसप्रकार दीक्षा का निश्चय करके नमि महाराजा बारह भावनाओं का चिन्तन करने लगे । ती "जीव स्वयं ही मोह द्वारा स्वयं को बन्धन में बांधकर संसाररूपी कारागृह में पड़ा है। जिसप्रकार पिंजरे में बन्द पक्षी दुःखी होता है अथवा खम्भे से बंधा हुआ गजराज दुःखी होता है, उसीप्रकार मोही जीव भवबन्धन में निरन्तर दुःखी एवं व्याकुल होता है । यद्यपि यह प्राणी मृत्यु एवं दुःख से भयभीत होने पर भी उसके कारणों की ओर दौड़ता है; उनसे छूटने का प्रयत्न नहीं करता । तीव्र विषयतृष्णा से आर्त- रौद्रध्यान कर-करके वह महान दु:खी होता है, चार गति के परिभ्रमण में उसे कहीं विश्राम नहीं है । रत्नत्रयधर्म का सेवन ही इस भवदुःख से छुड़ाकर मोक्षसुख देनेवाला है। इसप्रकार भव-तन-भोग से विरक्त होकर निज | ज्ञायकतत्त्व में ही अपने चित्त को अनुरक्त करनेवाले नमि महाराजा दीक्षा ग्रहण करने को तत्पर हुए। न मि ना थ पर्व २०
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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