SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BREFEF FF is मिथ्यादर्शन-क्रोध-मान को, दुःखद बताया हे जिननाथ ! माया-लोभ कषाय पाप का, बाप बताया सुव्रतनाथ ।। शरण आपकी पाने से, भविजन होते भव सागर पार । हे मुनिसुव्रतनाथ ! आपको, वन्दन करते सौ-सौ वार ।। भगवान मुनिसुव्रतनाथ दो भव पूर्व भरतक्षेत्र की चम्पापुरी नगरी के हरिवर्मा राजा थे। वे हरिवर्मा जिसप्रकार बाह्य शत्रुओं को जीतने में वीर थे, उसीप्रकार अन्तर के मोह शत्रु पर विजय प्राप्त करने में भी || ती शूरवीर थे। राजवैभव में रहकर भी राग को चेतना में प्रविष्ट नहीं होने देते थे। इसलिए उनकी चेतना मोक्ष | को साधने में समर्थ थी। एक बार उद्यान के माली ने उन्हें यह शुभ समाचार दिया कि "अपने उद्यान में मुनिराज अनन्तवीर्य पधारे हैं। यह सुनते ही उन्हें भारी हर्ष हुआ। वे मुनिराज श्रुतकेवली थे। मुनिराज के चरणों में उनकी चेतना ऐसी उल्लसित हुई कि तत्क्षण दर्शनमोह का क्षय करके उन्होंने क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर लिया तथा मुनिराज का तत्त्वोपदेश सुनकर संसार से विरक्त हो गये और तुरन्त मुनिदीक्षा ले ली। दर्शनविशुद्धि आदि सोलह भावनाओं द्वारा तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध हो गया। तत्पश्चात् सल्लेखना पूर्वक शरीर का त्यागकर वे चौदहवें स्वर्ग में इन्द्र हुए। असंख्यात वर्षों तक उस स्वर्गलोक के दिव्य वैभव में आत्मज्ञान सहित रहे। आयु पूर्ण होने पर मनुष्य लोक में अन्य तीर्थंकरों की भांति ही तीर्थंकर के रूप से अवतरित होने की पूर्वापर की सम्पूर्ण प्रक्रिया जैसी होती रही है, तदनुसार सम्पन्न हुई। मनुष्यलोक में उससमय भरतक्षेत्र के राजगृही नगर में हरिवंशोत्पन्न राजा सुमित्र राज्य करते थे। उनकी || १९ RFE OF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy