SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ की तीर्थ परम्परा में जब तीस लाख करोड़ सागर बीत चुके तब संभवनाथ स्वामी हुए। तीर्थंकर संभवनाथ की आयु साठ लाख पूर्व की थी। जब उनकी आयु का चौथाई भाग बीत चुका तब उन्हें राज्यसत्ता प्राप्त हुई थी। वे सदा देवोपनीत सुखों का अनुभव किया करते थे। इसप्रकार सुखोपभोग करते हुए उन्हें जब चवालीस लाख पूर्व और चार पूर्वांग व्यतीत हो चुके तब एक दिन मेघों की क्षणभंगुरता देखते ही उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया। वे विचार करने लगे कि “वस्तुत: आयुकर्म का अन्त ही यमराज है। यमराज नाम की कोई देवीशक्ति या राक्षस आदि कुछ भी नहीं है। रागरूप रस में लीन होता हुआ यह अज्ञानी प्राणी नीरस विषयों को भी सरस मानकर सेवन करता हुआ || मृत्यु को प्राप्त होता है। इसे साहित्यिक भाषा में काल के गाल में चला गया, यमराज के द्वारा मार दिया गया कहा जाता। काल और यमराज मृत्यु के ही नाम हैं। अन्य कुछ नहीं। इसकारण अनादिकाल से चले आ रहे इस विषय रस को और उनके सेवन में तल्लीन प्राणियों को धिक्कारते हैं, फिर भी यह मोही प्राणी, | पुनः-पुन: उन्हीं विषयों में रमता है। भगवान संभवनाथ विचारते हैं कि “इतने कष्ट में रहकर भी ये प्राणी | क्यों नहीं चेतते ?" “यह लक्ष्मी बिजली की चमक के समान अस्थिर है। जो भव्य प्राणी इस चंचला लक्ष्मी का मोह छोड़ | देता है, वह निर्मल सम्यग्ज्ञान की किरणों से प्रकाशमान मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त होता है।" असार संसार से विरक्त हुए संभवनाथ के वैराग्य की अनुमोदना करने आये लौकान्तिक देवों ने प्रभु के वैराग्य वर्द्धक विचारों की हृदय से अनुमोदना की तथा प्रशंसा करते हुए सभी लौकान्तिक देव वापिस चले गये। महाराजा संभवनाथ ने भी अपने पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ले ली। देवों द्वारा उनका दीक्षाकल्याणक मनाया गया। तत्पश्चात् वे देवों द्वारा उठाई पालकी में बैठकर नगर से बाहर चले गये । वन में एक हजार राजाओं के साथ उन्होंने संयम धारण किया। दीक्षा लेते ही उन्हें मन:पर्यय ज्ञान हो गया। सुवर्ण के समान प्रभा को धारण करनेवाले मुनिराज संभवनाथ ने दूसरे दिन आहार हेतु श्रीवास्ती नगरी में प्रवेश किया। वहाँ । वहाँ २
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy