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लाने का प्रयत्न करते हैं, कुनेन को बताशा में रखकर खिलाने की कोशिश करते हैं, अन्यथा प्रथमानुयोग | का प्रयोजन पूरा नहीं होता। बहुत से कथानक मिलते-जुलते एक जैसे होने से काल्पनिक से लगते हैं; परन्तु वस्तुतः बात यह है कि जिनका भविष्य लगभग एक जैसा है, उनके पूर्वभव की पर्यायों में भी अधिक भिन्नता नहीं हो सकती; क्योंकि वे सभी महान आत्मायें एक जैसे लोकोपकार के कल्याणकारी कार्य और | अहिंसक आचरण करते हैं तो उनके एक जैसा ही पुण्यार्जन होता है, इसकारण एक जैसे अहमिन्द्र आदि
के सुखद संयोगों के साथ क्रमशः आत्मोन्नति के शिखर पर पहुँचकर तीर्थंकर होने का सातिशय पुण्य बांधते हैं, परिणामस्वरूप एक जैसे यशस्वी और सुखद संयोग मिलते हैं, जो स्वाभाविक ही हैं; अत: यदि आपको | उनके जीवन-चरित्रों में पुनरावृत्ति जैसा लगे तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं है। यह सब संभव है।
पुराणों में २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण आदि के व्यक्तित्व, विचार एवं घटनायें लगभग एक जैसी हो गईं। इसकारण पुराणों में कथानक भी एक जैसे मिलते हैं। यहाँ पुनरावृत्ति | से बचने के लिए नहीं चाहते हुए भी कहीं-कहीं संक्षिप्त सांकेतिक भाषा में कहकर आगे बढ़ना पड़ा है, इससे पाठक किसी भी शलाका पुरुष के व्यक्तित्व का मूल्यांकन कम नहीं समझें और उनके महान आदर्श चरित्रों से अपने जीवन को परिमार्जित करके उन जैसा बनाने का पुन:-पुन: संकल्प दुहराते रहें। संभवत: आचार्यों ने सभी घटनाओं की पुनरावृत्ति इसी दृष्टिकोण से की हो; परन्तु वर्तमान वातावरण को देखते हुए संक्षिप्त और सरलता अति आवश्यक है - ऐसा पाठक स्वयं अनुभव करते हैं। ___ यदि पाठक इन्हें पढ़कर भी शलाका पुरुषों के आदर्शों का अनुकरण कर पाये तो वह दिन बहुत दूर नहीं होगा, जब हम भी उन शलाका पुरुषों की श्रेणी में कहीं खड़े होंगे। अत: न केवल श्रेष्ठ, बल्कि ऐसेऐसे त्रेसठ शलाका महापुरुषों के जीवन चरित्र को बारम्बार पढ़ना पढ़े तो भी पीछे नहीं हटें; बल्कि उत्साह से स्वयं पढ़ें और दूसरों को पढ़ने के लिए भी प्रेरित करें।
हाँ, तो हम महाराजा वैश्रवण की चर्चा कर रहे थे कि राजा और प्रजा - दोनों ही अपने-अपने कर्तव्य १८
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