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हे मल्लिनाथ ! तुम परमपुरुष हो, मंगलमय हो प्रभुवर आप। भक्तिभावना से हे भगवन ! भक्तजनों के कटते पाप ।। प्रभो! आपका भक्त कभी भी, अधोगति नहीं जाता है।
निजस्वभाव को पाकर प्रभुवर, शीघ्र मुक्तिपद पाता है। तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ के पूर्वभवों का परिचय कराते हुए आचार्य गुणभद्र उत्तरपुराण में उनके तीसरे पूर्वभव के संबंध में कहते हैं कि वे वीतशोका नगरी के एक न्यायवन्त, प्रजापालक वैश्रवण नाम के महाराजा थे। महाराजा की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि उसका खजाना जनहित के कार्यों के लिए सदैव खुला रहता था। उसकी सेना प्रजा की सुरक्षा के लिए ही पूर्ण रूप से समर्पित थी। वह प्रजा के पोषण में ही अपनी शक्तियों और वैभव का उपयोग करता था। इसकारण प्रजा भी महाराजा के प्रति सदैव समर्पित भाव से सेवा में तत्पर रहती थी।
आज के परिप्रेक्ष्य में यदि हमारे वर्तमान जन प्रतिनिधि उन राजा-महाराजाओं के लोकोपकारी कार्यों का शतांश भी अनुकरण करें तो इन्हें भी चुनाव के समय पर जनता के सामने जनमत संग्रह करने के लिए भिखारियों की भांति जनमतों की भीख नहीं माँगनी पड़े, सच्चे-झूठे वायदे नहीं करना पड़ें।
ग्रन्थकारों द्वारा ऐसे उत्कृष्ट चरित्रों का चित्रण करने का प्रयोजन भी यही सीख देना होता है। यद्यपि बहुत से साहित्यिक कथानकों और सुपात्रों के आदर्श चरित्र-चित्रण कवियों और लेखकों की मानसिकता की उपज भी होते हैं; परन्तु इन पुराणों में तो तीर्थंकर, चक्रवर्ती, नारायण, बलभद्र जैसे पुराण पुरुषों का यथार्थ चित्रण है; अत: इन्हें यथार्थ मानकर ही इनका श्रद्धान और अनुकरण करते हुए कथानक में रोचकता || १८
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