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________________ EFFEE IFE 19 जन्मोत्सव के साथ उनका जन्माभिषेक का महोत्सव इन्द्रों द्वारा मनाया गया। | भगवान कुन्थुनाथ के बाद जब एक हजार करोड़ वर्ष कम पल्य का चौथाई भाग बीत गया जब श्री बालक अरनाथ का जन्म हुआ था। तीर्थंकर भगवान अरनाथ की आयु चौरासी हजार वर्ष की थी। तीस धनुष ऊँचा उनका शरीर था, सुवर्ण के समान उनकी उत्तम कान्ति थी। उनके कुमार काल के इक्कीस हजार वर्ष बीत जाने पर उन्हें मण्डलेश्वर के योग्य सहज राज्यपद प्राप्त हुआ तथा इतने ही वर्ष बाद उन्हें चक्रवर्ती पद प्राप्त हुआ। इसप्रकार राज्य शासन करते हुए जब आयु का तीसरा भाग बाकी रह गया तब एक दिन उन्हें शरदऋतु के मेघों का अकस्मात् विलय हो जाना देखकर अपने जन्म को सार्थक करनेवाला वैराग्य हो गया। उसीसमय लौकान्तिक देवों ने उनके विचारों का अनुमोदन किया और वे अरविन्द कुमार नामक पुत्र को राज्य देकर देवों द्वारा उठाई गई वैजयन्ती नामक पालकी पर सवार हो सहेतुक वन को चले गये। वहाँ | बेला का नियम लेकर उन्होंने मगसिर शुक्ला दसवीं के दिन एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण कर ली। दीक्षा धारण करते ही वे चार ज्ञान के धारी हो गये। इसतरह मुनिराज अरनाथ के जब छद्मस्थ अवस्था के सोलह वर्ष व्यतीत हो गये तब वे दीक्षावन में कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन आम्रवृक्ष के नीचे तेला का नियम लेकर विराजमान हुए, उसीसमय घातियाकर्म नष्ट कर उन्होंने अर्हन्त पद प्राप्त किया। देवों ने मिलकर उनके केवलज्ञान कल्याणक का महोत्सव मनाया और पूजा की। उनके ३० गणधर थे, ६१० ग्यारह अंग और चौदह पूर्व (सम्पूर्ण श्रुतज्ञान) के धारी थे। पैंतीस हजार आठ सौ पैंतीस सूक्ष्मबुद्धि के धारक उपाध्याय थे। दो हजार आठ सौ अवधिज्ञानी तथा इतने ही केवली थे। चार हजार तीन सौ विक्रियाऋद्धिधारी, दो हजार पचपन मन:पर्यय ज्ञानी तथा एक हजार छह सौ श्रेष्ठ वादी थे। इसतरह सब मिलाकर पचास हजार तीस मुनि उनके समवशरण में थे। साठ हजार आर्यिकायें, १. चक्रवर्तित्व की विशेषताएँ बारह चक्रवर्ती के प्रकरण में आगे दी गई है। ल १७
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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