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________________ FREE FEE FF is हे अरनाथ ! जिनेश्वर तुमने, छह खण्ड छोड़ वैराग्य लिया। चक्र-सुदर्शन त्यागा तुमने, धर्मचक्र शिर धार लिया ।। सिद्धचक्र के साधनार्थ प्रभु ! सकल परिग्रह त्याग दिया। शुक्लध्यान की सीढ़ी चढ़, सुखमय अर्हत्पद प्राप्त किया। तीर्थंकर अरनाथ के कुछ पूर्वभवों का परिचय कराते हुए आचार्य गुणभद्र लिखते हैं कि इस जम्बूद्वीप में सीता नदी के उत्तर तट पर एक कच्छ नाम का देश है। उसके क्षेमपुर नगर में तीर्थंकर अरनाथ का ही जीव तीसरे पूर्वभव में धनपति राजा था। वह सर्वगुण सम्पन्न था। एक दिन राजा धनपति अर्हतनन्दन तीर्थंकर की दिव्यध्वनि सुनकर संसार की असारता का और आत्मा के अनन्त वैभव का स्वरूप पहचान कर विषय-भोगों से विरक्त हो गया। अपना राज्यभार पुत्र को देकर जन्म-मरण का नाश करनेवाली जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली। मुनि धनपति ने श्रुत के ग्यारह अंग का पारगामी होकर सोलहकारण भावनाओं को भाकर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया । फलस्वरूप सर्वार्थसिद्धि में ३३ सागर की आयुवाला अहमिन्द्र हुआ। वे वहाँ से चयकर अरनाथ तीर्थंकर होनेवाले थे, अत: उनके राग-द्वेष आदि अत्यन्त शान्त हो गये थे। जब वहाँ से चयकर तीर्थंकर होने में केवल छह माह शेष बचे तो तीर्थंकर के जन्मस्थान में भी जो-जो क्रियायें सभी तीर्थंकरों के गर्भ एवं जन्म के समय होती हैं, वे सब क्रियायें भी प्रारंभ हो गईं। जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुरुजांगल (वर्तमान कुरुक्षेत्र) के हस्तिनापुर नगर में सोमवंश में उत्पन्न राजा सुदर्शन के घर उनकी रानी मित्रसेना के गर्भ में बालक आने के छह माह पूर्व से जन्म तक (१५ माह) रत्नवृष्टि हुई, माता को १६ स्वप्न दिखाई दिए, देवियों द्वारा माता की सेवा, देव और इन्द्रों द्वारा समय-समय सातिशय पुण्य के फलस्वरूप सभी अतिशय तथा बाल तीर्थंकर के जन्म पर | ल | पर।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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