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________________ FEEFFFFy ॥ एक बार वे सेना के साथ क्रीड़ा करने उपवन में गये । क्रीड़ा के बाद जब वे वापिस लौट रहे थे कि | मार्ग में उन्होंने किसी मुनि को आतप योग में स्थित देखा और देखते ही मंत्री को ऊँगली से इशारा किया कि देखो, देखो! मुनिराज को देखो! कैसे ध्यानस्थ हैं? मंत्री मुनिराज के दर्शन कर नतमस्तक हो गया और | पूछने लगा कि - हे देव! इस तरह का कठिन तप करके ये क्या फल प्राप्त करेंगे? __कुन्थुनाथ हँसकर कहने लगे कि ये मुनि इसी भव में निर्वाण प्राप्त करेंगे। यदि कदाचित इसी भव में मुक्ति नहीं हो सकी तो इन्द्र या चक्रवर्ती पद प्राप्त करके क्रम से अल्पकाल में ही शाश्वत मोक्षस्थान प्राप्त करेंगे। जो परिग्रह का त्याग नहीं करता, उसी का संसार में परिभ्रमण होता है। महाराजा कुन्थुनाथ ने जितने समय मण्डलेश्वर राजा बनकर शासन किया था, उतने ही काल चक्रवर्ती रहे। तत्पश्चात् वे संसार के सुख को असार क्षणिक जानकर संसार से विरक्त हो गये । सारस्वत आदि देवों ने आकर उनके वैराग्य का स्तवन किया एवं उन्होंने अपने पुत्र को राज्यपद सौंपकर वन को जाने की तैयारी की। देवों द्वारा दीक्षाकल्याणक महोत्सव मनाया गया। वे देवों द्वारा लाई गई विजया नामक पालकी में बैठकर सहेतुक वन में गये। वहाँ वैशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन उन्होंने स्वयं दीक्षा धारण कर ली। उसी समय उन्हें मनःपर्ययज्ञान प्रगट हो गया। दूसरे दिन वे हस्तिनापुर में आहार को गये। धर्ममित्र राजा ने उन्हें आहार दान देकर पञ्चाश्चर्य प्राप्त किए। सोलह वर्ष बाद उसी वन में तिलक वृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन उन्हें केवलज्ञान प्रगट हो गया। देव आये, उन्होंने केवल ज्ञान कल्याणक महोत्सव के साथ पूजा की। उनके स्वयंभू आदि पैंतीस गणधर थे। सात सौ चौदह पूर्व के धारक ज्ञानी मुनिराज थे। तैतालीस हजार एक सौ पचास उपाध्याय थे। दो हजार पाँच सौ निर्मल अवधिज्ञान के धारक थे। तीन हजार दौ सौ केवलज्ञानी अर्हन्त परमात्मा थे। पाँच हजार एक सौ विक्रिया ऋद्धिधारी मुनिराज ने तीन हजार तीन सौ मनःपर्यय ज्ञानी थे। इस तरह सब मिलकर साठ हजार मुनिराज उनके साथ थे। साठ हजार तीन सौ आर्यिकायें, तीन लाख श्राविकायें, दो लाख श्रावक, असंख्यात दैव-देवियाँ और संख्यात तिर्यंच थे। 4 OFF १६
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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