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________________ CREEFFFFy प्रभु शान्तिनाथ के साथ उनके भ्राता चक्रायुध गणधर भी केवलज्ञान प्रकट करके मोक्ष को प्राप्त हुए। || | भव-भवान्तर के साथी मोक्षगमन में भी साथ रहे। कुन्दप्रभा कूट के ऊपर सिद्धालय में, लोक में सर्वोच्च स्थान पर जहाँ पूर्वकाल में अनन्तानन्त सिद्ध जीव विराजते थे, उनके सान्निध्य में वे भी शाश्वतरूप से विराजमान हुए और वर्तमान में भी विराज रहे हैं। प्रभु श्री शान्तिनाथ के मोक्षकल्याणक प्रसंग पर इन्द्र ने निर्वाण महोत्सव किया और आनन्द नाम का अति भव्य नाटक किया। उसमें श्रीषेण राजा से लेकर शान्तिनाथ तीर्थंकर तक के बारह भवों में भगवान ने जो मोक्षसाधना की उसे अद्भुत ढंग से प्रदर्शित किया। उस नाटक द्वारा प्रभु का जीवन देखकर अनेक जीव मुक्तिसाधना हेतु प्रेरित हुए। हे प्रभो! तीन लोक में श्रेष्ठ आपका शरीर अत्यन्त सुन्दर था, यह सच है; परन्तु आपके चैतन्य की और | इस समस्त धर्मवैभव के साथ उस दिव्य श्रीमण्डप के समकक्ष ४,००० केवलज्ञानी-अरहंत विराजते थे। अतीन्द्रिय सुन्दरता के समक्ष उसका क्या मूल्य ? क्योंकि जब आप सिद्धपुरी में पधारे तब उस चैतन्य की सुन्दरता को तो साथ ही ले गये थे; शरीर की उस दिव्यसुन्दरता का आपने त्याग किया, इसलिए वह पुद्गल में विलीन हो गया। अहा! उस कार्य द्वारा तो आपने हमें जड़-चेतन का भेदज्ञान कराया। आज भी आपके स्वरूप का चिन्तन करने से जगत के जीवों को भेदज्ञान होता है और वे मोक्ष के पथ पर चलते हैं। आपका शासन जयवन्त हो। +ESCREE FB धर्म करने की उम्र कोई निश्चित नहीं होती, धर्म तो हमारे जीवन का अभिन्न अंग होना चाहिए। क्या पता कब/क्या हो जाये ? - इन भावों का फल क्या होगा, पृष्ठ-६३ १५
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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