________________
CREE
F
IFE 19
| कैसा महान, सुन्दर एवं गम्भीर भावों से भरा होता है और उनके समागम से जीवों को धर्म की कैसी उत्तम | प्रेरणाएँ प्राप्त होती रहती हैं। | शान्तिनाथ जब धर्मचक्री होंगे तब धर्मचक्र सहित भरतक्षेत्र के मात्र आर्यखण्ड में ही विहार करेंगे, अनार्यखण्डों में नहीं जायेंगे। वर्तमान में चक्रवर्ती रूप से उन्होंने सुदर्शनचक्र सहित छहों खण्ड में विहार किया, अनार्यखण्डों में भी गये। अभी तक कोई तीर्थंकर अनार्यखण्डों में नहीं गये थे। भाग्यशाली हुआ अनार्यखण्ड भी कि वहाँ के जीवों को भावी तीर्थंकर के दर्शन हुए। चक्रवर्ती के रूप में शान्तिनाथ सौराष्ट्र में पधारे थे और पश्चात् धर्मचक्री तीर्थंकर के रूप में भी उनका सौराष्ट्र में पदार्पण हुआ था। शत्रुजयगिरि के जिनमन्दिर में विराजमान जिनप्रतिमा आज भी उनका स्मरण कराती हैं। तीन खण्ड की विजय के पश्चात् प्रभु श्री शान्तिनाथ चक्री जब विजयार्द्ध पर्वत पर गये तब वहाँ रहनेवाले विद्याधर राजाओं ने अति हर्षपूर्वक उनका एक परमात्मा जैसा सम्मान किया और (१) विजयपर्वत नाम का श्वेत हाथी (२) पवञ्जय नाम का उत्तम अश्व तथा (३) सुभद्रा नामक सुन्दर कन्या - यह तीन उत्तमोत्तम रत्न उन चक्रवर्ती महाराजा को अर्पण करके महान आदरसहित उनके शासन का स्वीकार किया। विद्याधरों में तीर्थंकर उत्पन्न नहीं होते और सामान्यरूप से वहाँ कोई तीर्थंकर जाते भी नहीं हैं; परन्तु इस चौबीसी में एक ही जीव एकसाथ तीर्थंकर एवं चक्रवर्ती - दोनों पदवी के धारक होने से विजयार्द्ध पर्वत पर तथा अनार्यखण्डों में भी छद्मस्थ भावी तीर्थंकर भगवान का पदार्पण हुआ, यह वहाँ के निवासियों के लिए एक अति आश्चर्यकारी एवं महाआनन्दकारी घटना थी। चक्री का सुदर्शनचक्र भी धर्मचक्र जैसा ही था; क्योंकि उसके द्वारा कभी किसी जीव की हिंसा होने का प्रसंग नहीं आता था। इतना ही नहीं, वह चक्रधारी मात्र चक्रवर्ती ही नहीं थे, साथ ही तीर्थंकर भी थे, इसलिए उनके सुदर्शन चक्र से भव्यजीव धर्म भी प्राप्त करते थे। चक्री कहीं हाथी-घोड़े या रत्न आदि लेने के लिए छह खण्ड में नहीं गये थे, रत्नों के ढेर तो कुबेर द्वारा उनके जन्म से पूर्व ही लग गये थे। एक भावी तीर्थंकर, तीर्थंकररूप से अवतरित होने के पश्चात् आर्य खण्ड में विहार करके म्लेच्छ खण्ड के लोगों को भी दर्शन दें, यह उन म्लेच्छों का सौभाग्य ही था। वास्तव में पंचम चक्रवर्ती
EFFE