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________________ "अहा, ऐसा धर्मात्मा और मोक्षगामी जीव मेरे उदर में!" उन्हें आत्मा के असंख्यात प्रदेशों में किन्हीं अपूर्व चैतन्य भावों का वेदन हुआ, उनके अंतर से मोहान्धकार दूर होकर चैतन्य प्रकाश खिल उठा। | शान्तिनाथ प्रभु के गर्भावतार कल्याणक का उत्सव करने हेतु स्वर्ग से इन्द्र आ पहुँचे। उन्होंने महाराजा अश्वसेन तथा महादेवी अचिरा माता का तीर्थंकर के माता-पिता के रूप में सम्मान किया; दिव्य वस्त्राभूषण भेंट किए और स्तुति की। | हस्तिनापुरी के भाग्य का उदय हुआ। उसे अयोध्यातीर्थ जैसा गौरव प्राप्त हुआ। वहाँ प्रतिदिन रत्नों की वर्षा होती थी, शान्ति एवं समृद्धि बढ़ती जा रही थी। कमलवासी श्री-ही-धृति-कीर्ति-लक्ष्मी-सरस्वती आदि देव कुमारियाँ भी इन्द्र की आज्ञा से अचिरा माता की सेवा करने आ गई थीं। वे देवियाँ आनन्दविनोदपूर्वक चर्चा करके माता को आनन्दित करती थीं और उदरस्थ प्रभु की महिमा प्रकट करती थीं। एक बार श्री देवी ने पूछा - हे सखी ! इन माताजी के आसपास सर्वत्र इतनी अधिक शान्ति क्यों है? तब लज्जावती ह्री देवी ने कहा - हे देवी! भगवान शान्तिनाथ स्वयं माताजी के उदर में विराज रहे हैं, उन्हीं के प्रताप से इतनी अधिक शान्ति छा रही है। धृति देवी ने पूछा - हे सखी! महाराजा अश्वसेन एवं अचिरा माता की कीर्ति कैसे फैल गई? कीर्ति देवी ने कहा - हे देवी ! तीन लोक में कीर्ति करनेवाला आत्मा उनके उदर में आया है। लक्ष्मी देवी ने पूछा - हे देवी सरस्वती! आजकल अचिरा माता के अंतर से सरस्वती उमड़ रही है और सम्पूर्ण राज्य में लक्ष्मी की खूब वृद्धि हो रही है, उसका क्या कारण है ? सरस्वती देवी ने कहा - हे लक्ष्मी! इससमय माताजी के उदर में जो तीर्थंकर विराज रहे हैं, वे तीन लोक | की लक्ष्मी तथा श्रेष्ठ सरस्वती के स्वामी होनेवाले हैं। - ऐसी उत्तम चर्चा में प्रसन्नतापूर्वक भाग लेकर माताजी भी देवियों को आनन्द प्राप्त कराती थीं। ॥ १५ +ESCREE FB
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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