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________________ BREFFFFFFY || उठे - ऐसे भयंकर दृश्य उपस्थित किये तथा मनोहर हावभाव गीत-विलास-आलिंगनादि रागवर्धक || कामचेष्टायें कर-करके उन्हें ध्यान से च्युत करने के लिए अनेक उपद्रव किये; परन्तु मेघरथ तो मेरु समान अचल ही रहे । बाह्य में क्या-क्या चेष्टायें हो रहीं हैं, उनके प्रति उनका लक्ष्य ही नहीं था ? अन्त में देवियाँ थक गईं और खीझकर तिरस्कार भरे वचन बोलीं, शरीर की अनेक वीभत्स चेष्टायें कीं; परन्तु वे ध्यानी वीर आत्मध्यान से नहीं डिगे सो नहीं डिगे। देवियाँ उनके वैराग्यरूपी कवच को नहीं भेद सकीं।। | जो उपयोग को निज परमात्मा में एकाकार करके बैठे हों, उनका बाह्य उपद्रव क्या बिगाड़ सकते? | परमात्मतत्त्व में उनका प्रवेश ही कहाँ है ? जिसप्रकार बिजली की तीव्र गड़गड़ाहट भी मेरुपर्वत को हिला नहीं सकती, उसीप्रकार देवियों की रागचेष्टा उन महात्मा के मनमेरु को किंचित् भी डिगा नहीं सकी। अन्त | में देवियाँ हार गईं; उन्हें विश्वास हो गया कि इन्द्रराज ने जो प्रशंसा की थी वह यथार्थ है । इसप्रकार उनके गुणों से प्रभावित होकर उन देवियों ने उन्हें वन्दन किया, क्षमायाचना की और उनकी स्तुति करके स्वर्ग लोक में चली गईं। रात्रि व्यतीत होते ही महाराजा मेघरथ ने निर्विघ्नरूप से अपना कायोत्सर्ग पूर्ण किया। एकबार भगवान घनरथ तीर्थंकर की धर्मसभा का नगरी में आगमन हुआ। पिता और प्रभु के पधारने की बात सुनते ही मेघरथ के हर्ष का पार नहीं रहा । महाराजा मेघरथ सपरिवार महान उत्सवपूर्वक समवसरण में गये। एक तो उनके पिता और वे भी तीर्थंकर, उनके दर्शन से अति आनन्द हुआ। सबने भक्तिसहित परमात्मा की वन्दना करके उनकी दिव्यवाणी का श्रवण किया। प्रभु की वाणी में मोक्षसाधना का अद्भुत वर्णन सुनकर राजा मेघरथ के चित्त में मोक्षसाधना की उत्सुकता उत्पन्न हो गई और वे संसार छोड़कर मुनिदीक्षा लेने को तैयार हुए। उनके भ्राता दृढ़रथ भी उन्हीं के साथ दीक्षित होने को तैयार हो गये। मेघरथ ने उनसे राज्य संभालने को कहा; परन्तु वे बोले कि हे पूज्य! जिस राजपाट और जिन विषय- | भोगों को असार जानकर आप त्याग रहे हैं, मैं भी उनको असार ही मानता हूँ। आप इनका मोह छोड़ रहे || १५ EsrFE FB
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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