________________
CREE
F
इनमें कहीं शान्ति नहीं है; मैं तो मोक्ष की साधना हेतु आज ही मुनि दीक्षा लूँगा । ऐसे निश्चयपूर्वक जिनदीक्षा | लेकर वे भी वज्रायुध मुनिराज के साथ विचरने लगे। पिता-पुत्र (भावी तीर्थंकर-गणधर) दोनों मुनिराजों ने अनेक वर्षों तक साथ-साथ विहार किया। अन्त में विदेहक्षेत्र के वैभार पर्वत पर उन दोनों मुनिवरों ने रत्नत्रय की अखण्ड आराधनापूर्वक समाधिमरण किया और ऊर्ध्व ग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए।
इसप्रकार क्षेमंकर तीर्थंकर और उनके पुत्र वज्रायुध, उनके पुत्र सहस्रायुध और उनके पुत्र कनकशान्ति, इन चार पीढ़ियों में से दो पीढ़ी के जीवों ने तो मोक्ष प्राप्त किया और बीच की दो पीढ़ी के जीव अहमिन्द्र हुए; वे तीन भव के पश्चात् मोक्ष प्राप्त करेंगे। | तीसरा पूर्व - तीर्थंकर शान्तिनाथ और उनके गणधर चक्रायुध - यह दोनों पूर्वभव में ग्रैवेयक में अहमिन्द्र देव हुए हैं। ग्रैवेयक के देवों के देवियाँ नहीं होती, तथापि उनकी अपेक्षा अत्यधिक सुख यहाँ इन्द्रयाणियों के बिना ही उन्हें था। इससे सिद्ध है कि सुख विषयों के भोगोपभोग में नहीं होता।
ऐसी मुमुक्षु भावना सहित स्वर्गलोक की असंख्यात वर्षों की आयु पूर्ण करके वे दोनों महात्मा दूसरे पूर्वभव में मनुष्य लोक में विदेह क्षेत्र में घनरथ महाराजा के पुत्र मेघरथ और दृढ़रथ के रूप में उत्पन्न हुए।
IFE 19
4
___भावी भगवान शान्तिनाथ का जीव मेघरथ कुमार और उनके गणधर चक्रायुध का जीव दृढ़रथकुमार हुआ। वे मेघरथ और दृढ़रथ दोनों भाई आत्मज्ञानी, शांति परिणामी तथा विद्वान थे। भवों-भवों के तथा मोक्ष तक के साथी होने से दोनों को एक-दूसरे के प्रति परमस्नेह था। दोनों साथ खेलते, साथ खाते; परस्पर धर्मचर्चा करते और भगवान के समवसरण में या राज दरबार में भी साथ ही जाते । उनकी चेष्टायें सबको आनन्दकारक थीं। काललब्धि से प्रेरित महाराजा घनरथ को स्वयंबुद्धरूप से संसार से वैराग्य जागृत हुआ; उन्होंने मेघरथ को राज्य सौंपा और स्वयं जिनदीक्षा धारण की। देवों ने उनका दीक्षाकल्याणक मनाया। घनरथ मुनिराज शुक्लध्यान द्वारा केवलज्ञान प्रकट करके तीर्थंकर हुए और दिव्यध्वनि द्वारा अनेक जीवों को ||
FEFbs