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________________ EFFFFFF Tv ३. उन वज्रायुध के पुत्र सहस्रायुध (भावी गणधर चक्रायुध) ४. उन सहस्रायुध के पुत्र कनकशान्ति (जो चरमशरीरी थे और केवलज्ञान प्रकट करके धर्मोपदेश द्वारा अपने दादा को भी वैराग्य के निमित्त हुए) एक बार रत्नपुरी की राजसभा में ये चारों महात्मा बैठे थे। तीर्थंकर क्षेमंकर महाराजा - पुत्र, पौत्र एवं प्रपौत्र सहित शोभायमान हो रहे थे; इतने में उस राजसभा में एक आश्चर्यजनक घटना हुई। इन्द्रसभा में वज्रायुध की प्रशंसा और देव द्वारा परीक्षा तथा स्तुति - जब यहाँ रत्नपुरी में राजसभा भरी थी, उसीसमय अमरपुरी में इन्द्रसभा चल रही थी। उसमें इन्द्र महाराजा ने वज्रायुध कुमार की प्रशंसा करते हुए कहा - "हे देवों! देखो, इससमय विदेहक्षेत्र की रत्नसंचयपुरी नगरी में तीर्थंकर भगवान श्री क्षेमकर | महाराज की राजसभा में उनके पुत्र वज्रायुधकुमार बैठे हैं, वे भी भरतक्षेत्र के भावी तीर्थंकर हैं, महाबुद्धिमान हैं, अवधिज्ञानी हैं, गुणों के सागर हैं, तत्त्वों के ज्ञाता हैं, धर्मात्मा हैं, सम्यग्दर्शन के नि:शंकातादि गुणों से शोभित हैं और जिनप्रणीत तत्त्वार्थश्रद्धान में अडिग हैं।" इन्द्रसभा में वज्रायुधकुमार की ऐसी प्रशंसा सुनकर विचित्रशूल नाम का एक देव परीक्षा करने के लिए रत्नपुरी में आया और एकान्तवादी पण्डित का रूप धारण करके वज्रायुध से पूछने लगा - "हे कुमार! आप जीवादि पदार्थों का विचार करने में चतुर हैं तथा अनेकान्तमत के अनुयायी हैं; परन्तु वस्तु या तो एकांत क्षणिक होती है अथवा एकान्त नित्य होती है।" उत्तर में वज्रायुधकुमार ने अनेकान्त स्वभाव का कथन करते हुए स्याद्वाद शैली में उत्तर दिया - जीवादि कोई पदार्थ न सर्वथा क्षणिक है और न सर्वथा नित्य है; क्योंकि यदि उसे सर्वथा क्षणिक माना जाये तो पुण्य-पाप का फल या बंध-मोक्ष आदि कुछ भी नहीं बन सकते; पुनर्जन्म नहीं बन सकता, विचारपूर्वक किये जानेवाले कार्य महान-व्यापार-विवाहादि नहीं बन सकते; ज्ञान-चारित्रादि का अनुष्ठान या तपादि भी निष्फल हो जायेंगे, क्योंकि जीव क्षणिक होगा तो उन सबका फल कौन भोगेगा? तथा गुरु द्वारा शिष्य +ESCREE FB
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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