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________________ FFFF TV || को जाति स्मरण हुआ; तुरन्त उसका चित्त संसार से विरक्त हो गया और घर लौटने से पूर्व वहीं उसने एक | मुनिराज के समीप वस्त्राभूषण एवं राजमुकुट आदि सर्व परिग्रह छोड़कर चारित्रदशा अंगीकार कर ली। श्री मेघनाद मुनि आत्मध्यान पूर्वक विचर रहे थे। वे मुनिराज शांतभाव से समाधिमरण करके सोलहवें अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुए। इन्द्र तो शान्तिनाथ तीर्थंकर का जीव और प्रतीन्द्र चक्रायुध का जीव - इसप्रकार दोनों भाइयों का पुनः मिलाप हुआ। चैतन्यरस से भरपूर शांत जीवन जीनेवाले शांतिनाथ तीर्थंकर होने से पूर्व पाँचवें तथा तीसरे दोनों अवतारों में विदेहक्षेत्र में तीर्थंकर के पुत्र थे। दोनों बार इन्द्रसभा में इन्द्र ने उनके उत्तम गुणों की प्रशंसा की थी और देव-देवी उनकी परीक्षा करने आये थे। तब जैनतत्त्वज्ञान एवं ब्रह्मचर्य में वे इतने अडिग थे कि देव भी उनको डिगा नहीं सके। ज्ञान-वैराग्य की दृढ़ता के प्रेरक उनके जीवन की उत्तम घटनाएँ हम जैसे आत्मार्थी जीवों को भी आत्मसाधना हेतु उत्साहित करती हैं। भगवान शान्तिनाथ : चौथा पूर्वभव - क्षेमंकर महाराजा की महारानी कनकमाला की कुक्षि से व्रजायुध | के रूप में शान्तिनाथ प्रभु के जीव ने अच्युत स्वर्ग से अवतार लिया तथा वह मेघनाद जो अच्युत स्वर्ग में प्रत्येन्द्र हुआ था और भविष्य में तीर्थंकर शान्तिनाथ का गणधर होनेवाला है, वह वज्रायुध का पुत्र सहस्त्रायुध हुआ। उस सहस्रायुध का चरमशरीरी कनकशान्ति नामक पुत्र हुआ। इसप्रकार शान्तिनाथ प्रभु के पूर्वभव वज्रायुध के जीवन में एकसाथ चार पीढ़ियों में महापुरुष हुए, जो | इसप्रकार हैं - १. क्षेमंकर महाराजा (विदेहक्षेत्र के तीर्थंकर-रत्नसंचयपुरी के राजा) २. उन क्षेमंकर के पुत्र वज्रायुध कुमार (चक्रवर्ती - भावी तीर्थंकर शान्तिनाथ)
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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