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________________ FFFF T9 सुनकर संसार से विरक्त हो गई और दीक्षा लेकर आर्यिका बन गई। | अमिततेज और श्रीविजय - दोनों सम्यग्दर्शन प्राप्तकर और देशव्रत अंगीकार करके वापिस चले तो गये; परन्तु राजा अमिततेज के जीवन में एक महान परिवर्तन हो गया। यद्यपि विद्याधरों की दोनों श्रेणियों के स्वामी होने से विद्याधरों के चक्रवर्ती थे, तथापि अपनी आत्मसाधना को कभी नहीं भूलते थे। जिज्ञासु ने प्रश्न किया - "क्या चक्रवर्ती जैसे राज वैभव में रहकर भी धर्म हो सकता है ?" दिव्यध्वनि में उत्तर आया - "महाराजा अमिततेज की जीवनचर्या इस प्रश्न के उत्तर का प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रथम चक्रवर्ती भरतजी के बारे में तो यह बात प्रसिद्ध है ही कि “भरतजी घर में ही वैरागी।" बस, अमिततेज के विषय में भी यही बात है। वस्तुत: ज्ञानी की चेतना राग से तथा संयोग से अलिप्त ही रहती है।" महाराजा अमिततेज धार्मिक जीवन जीते थे और उनका वह मांगलिक जीवन अन्य जीवों को आत्महित की प्रेरणा देता था। भगवान शान्तिनाथ का सातवाँ पूर्वभव आनत स्वर्ग में - भगवान शान्तिनाथ तथा उनके छोटे भाई चक्रायुध (गणधर) जो पूर्व नौवें भव में राजा अमिततेज और श्रीविजय थे। उन्होंने मुनि होकर संन्यासपूर्वक मरण कर आनत स्वर्ग में देवपर्याय में उत्पन्न हुए। उनके नाम रविचूल और मणिचूल थे। वहाँ विशाल जिनमंदिर था, जहाँ जाकर वे दोनों देवपूजा करते थे। उन्हें अवधिज्ञान एवं अनेक लब्धियाँ थीं। स्वर्ग लोक में उन दोनों देवों ने असंख्यात वर्षों तक स्वर्ग के सुख भोगे, परन्तु वह पुण्य का वैभव उन्हें आकर्षित नहीं कर सका। वे उसमें रचे-पचे नहीं। अन्त में पुन: मनुष्य लोक में आये। ___ भगवान शान्तिनाथ का छठवाँ पूर्वभव - इस भव में भगवान शान्तिनाथ और चक्रायुध के जीव विदेह क्षेत्र की प्रभाकारी नगरी में स्मितसागर महाराजा के पुत्र हुए। वहाँ उनके नाम अपराजित और अनंतवीर्य | थे। ये दोनों वहाँ क्रमश: बलदेव (बलभद्र) एवं वासुदेव (नारायण) हुए। राजा स्मित सागर दोनों पुत्रों को राज्य देकर मुनि तो हो गये; परन्तु उन्होंने आत्मानुभूति के अभाव में | +ESCREE FB
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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