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________________ FREE FOR "FF 0 ॥ यहाँ ज्ञातव्य यह है कि चारित्रसार का कथन मूलत: आचार्य जिनसेन के आदिपुराण से ही उद्धृत होगा। | एक ही ग्रन्थ में प्रकरण के अनुसार अलग-अलग दो कथन हैं। एक जगह मद्य के त्याग को गौण किया जायेगा और दूसरी जगह मधु के त्याग को। इसी से स्पष्ट है कि उन्हें मद्य व मधु दोनों का ही त्याग इष्ट हैं। प्रश्न - पाँच अणुव्रत तो दूसरी प्रतिमा में होते हैं, फिर उन्हें अव्रती श्रावक के अष्ट मूलगुणों में सम्मिलित || क्यों किया गया ? उत्तर - व्यसनों के प्रकरण में जो चोरी एवं परस्त्री के त्याग की बात आई है। वहाँ पण्डित सदासुखदासजी स्पष्ट लिखेंगे कि “जाके जिनधर्म की प्रधानता होय है ताके चारित्र मोह के उदय त्याग, व्रत, संयम नाहीं होय तो हू अन्याय के धन में वांछा मत करो।" | यही स्थिति मूलगुणों में आये पाँचों पापों के त्याग के विषय में समझना चाहिए। भले ही उसे अभी व्रत संयम नहीं हुए हैं, पर जैनधर्म के श्रद्धानी के जीवन में लोकनिंद्य सामान्य पापाचार तो नहीं होना चाहिए। भले ही उसे अभी व्रत संयम नहीं हुए हैं, एतदर्थ ही पाँचों पापों के स्थूल त्याग को मूलगुणों में रखा जायेगा। यहाँ इतना विशेष जान लेना चाहिए कि मूलगुणों में तो पाँच अणुव्रत कहे, उनमें अतिचार नहीं टल पाते हैं और व्रतप्रतिमा में पंचाणुव्रतादि बारहव्रत अतिचार रहित पूर्ण निर्दोष रीति से पालन होते हैं। . 44 FB काल की गति विचित्र होती है, वह भी धीमे-धीमे मानव को सहजता की ओर ले जाने में सहयोग करती है। अच्छी-बुरी स्मृतियाँ काल के गाल में सहज समाती जाती हैं। अत: भूत के दुर्दिनों को भूलने में ही हमारा हित है। - इन भावों का फल क्या होगा, पृष्ठ-६९
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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