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हैं। प्रभो! हमारा वह दिन कब आयेगा जब हम आपके आदर्शों का अनुसरण करेंगे। हम उस दिन की प्रतीक्षा | कर रहे हैं और यह भावना भाते हैं कि वह मंगलमय दिन हमें शीघ्र प्राप्त हो, जब हम आपका अनुसरण करें। | "हे शान्तिनाथ भगवान! आपके परम शान्त स्वरूप का ध्यान आते ही हमें अपने चित्त में परम शान्ति का अनुभव होता है। ऐसी परम शान्ति संसार के किसी भी विषयों में कभी प्राप्त नहीं हुई। ठीक ही कहा है - 'जो संसार विर्षे सुख होता, तीर्थंकर क्यों त्यागें।' फिर आपने तो कामदेव, चक्रवर्ती और तीर्थंकर | जैसा अलौकिक पुण्यफल प्राप्त करके उस सबको भी त्याग दिया । वस्तुत: एक आपका मार्ग ही अनुकरणीय है। इसमें किंचित् भी संदेह नहीं है। तीन लोक एवं तीन कालों को जाननेवाला आपका सर्वज्ञतारूपी ज्ञान दर्पण और निराकुल तथा अतीन्द्रिय आनन्द एवं अनन्तकाल रहनेवाली सिद्धदशा वंदनीय है।
ऐसे तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथस्वामी के पूर्वभवों का संक्षिप्त रूप से परिचय कराते हुए आचार्य गुणभद्र उत्तरपुराण में लिखते हैं कि वे दसवें पूर्वभव में भोगभूमि में उत्पन्न हुए थे। वहाँ उनका नाम राजा श्रीषेण था। ___ "उस भोगभूमि में जीवों की संयमदशा और मोक्षप्राप्ति नहीं होती। हाँ, सम्यग्दर्शन हो सकता है। कोई जीव मनुष्य आयु का बंध करके क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करे तो वह भी भोगभूमि में उत्पन्न होता है तथा आत्मज्ञान के बिना भी पात्रदान देनेवाले अत्यन्त भद्रजीव भी भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं। वहाँ किसी पशु का भय नहीं है, दिन-रात और ऋतुओं का परिवर्तन नहीं। अधिक शीत और अधिक उष्णता नहीं, जीव परस्पर दुःख नहीं देते । सब जीव शान्त एवं भद्रपरिणामी होते हैं। वहाँ के सिंह आदि पशु मांसाहारी नहीं होते, अहिंसक होते हैं। वहाँ कीड़े-मकोड़े मच्छर आदि तुच्छ जीव नहीं होते । सब जीव सर्वांग सुन्दर होते हैं। कभी-कभी ऋद्धिधारी मुनिवर भी उस भोगभूमि में पधारते हैं, उनके उपदेश से अनेक जीव आत्मज्ञान प्राप्त करते हैं। पापी जीवों का वहाँ अभाव है। वहाँ के सब जीव मर कर देवगति में ही जाते हैं, अन्य किसी गति में नहीं जाते । वहाँ कोई जीव दुराचारी नहीं होते; किसी को इष्ट वियोग नहीं होता। वहाँ के जीवों
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