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________________ REFEF FF is 4 निज स्वरूप सरवर में जिनवर, नियमित नित्य नहाते हो। अपने दिव्य बोधि के द्वारा, विषय-विकार बुझाते हो।। परम शान्त मुद्रा से मुद्रित, शान्ति-सुधा बरसाते हो। परम शान्ति हेतु होने से, शान्तिनाथ कहलाते हो।। भगवान शान्तिनाथ एक साथ 'तीर्थंकर, चक्रवर्ती और कामदेव जैसी संसार की सर्वोत्कृष्ट पदवियाँ पाकर भी उनमें आसक्त नहीं हुए थे। कुरुक्षेत्र की हस्तिनापुर नगरी में राजा विश्वसेन की रानी ऐरावती की कुंख से आपका जन्म जेष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को सर्वार्थसिद्धि विमानवासी अहमिन्द्र से च्युत होकर तीर्थंकर शान्तिनाथ के रूप में हुआ था। तीर्थंकर धर्मनाथ के बाद पौन पल्य बीत जाने पर बालक शान्तिनाथ का अवतार हुआ था। उनकी आयु एक लाख वर्ष और ऊँचाई चालीस धनुष थी। शरीर की कान्ति सुवर्ण के समान थी। भगवान शान्तिनाथ का जीवन चरित्र पढ़ने से पाठकों के अन्दर भी आत्मसाधना करने की प्रेरणा मिलती है, उत्साह जाग्रत होता है। सांसारिक राग-रंग और विषय प्रवृत्ति से मन में निर्वृत्ति आती है। कहाँ चक्रवर्ती जैसा वैभव, तीर्थंकर जैसा यश और कामदेव जैसा रूप, दीर्घजीवन, बलिष्ठ शरीर, सबकुछ भोगोपभोग की सामग्री उपलब्ध और कहाँ हम तुच्छ प्राणी! तीन-तीन पदों के धारक शान्तिनाथ का मन वहाँ भी नहीं रमा और हम अज्ञानी ऐसी दुःखद परिस्थिति में भी इस संसार में रचे-पचे हैं, जमे हैं। सचमुच धन्य है उनका जीवन और धिक्कार है हम जैसे प्राणियों को, जो उनके आदर्श जीवन से प्रेरणा नहीं ले पा रहे हैं। ____धन्य हैं वे व्यक्ति जो जिनदर्शन करके निजदर्शन कर लेते हैं और उनके बताये मार्ग का अनुसरण करते FEFbs
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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