SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BREEFFFFy इसप्रकार समवसरण में विराजमान उन धर्मनाथ भगवान ने परम निरालम्बी रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग का उपदेश दिया। उन्होंने कहा "हे जीवो! तुम्हारे आत्मा का मोक्षमार्ग तुम्हारे आत्मा के आश्रित है; इसलिए आत्मा में से ही मोक्षमार्ग प्रगट करो। परद्रव्य का अवलम्बन लेने मत जाओ, उपयोग को परद्रव्यों में मत घुमाओ; अपने आत्मस्वरूप में ही एकाग्र होकर सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप परिणमित होओ! "दर्शन-ज्ञान-चारित्र में तू जोड़ रे ! निज आत्म को। दर्शन-ज्ञान-चारित्र को ही मोक्षमार्ग जिन ने कहा ।। प्राप्तकर निज आत्मा को, और जम स्वद्रव्य में। उसमें ही नित्य रम कर रहो, रहो न परद्रव्य में।" जिनोपदेश को अन्तर में उतारकर अनेक जीव स्वाश्रय से रत्नत्रय धर्मरूप परिणमित हुए और अपने आत्मा को मोक्षमार्ग में लगाया। इसप्रकार लाखों वर्ष तक भगवान धर्मनाथ ने धर्मचक्र प्रवर्तन किया। वे धर्म साम्राज्य के नायक थे; वे पृथ्वी पर पाँव नहीं रखते थे। आकाश में ही विहार करते थे। अरे, प्रभु के ध्यान द्वारा मोक्ष की साधना भी दो घड़ी में हो सकती है तो स्वर्गादिक का क्या कहना ? भगवान के समवसरण में प्रवेश करते ही 'मानस्तम्भ' की दिव्यता देखकर उस आश्चर्यजनक जिनवैभव के समक्ष भव्यजीवों का हृदय नम्रीभूत हो जाता और अन्त में जिनमहिमा जागृत होकर उसे जिनदेव की तथा जिनशासन की प्रतीति हो जाती थी। भगवान ने दिव्यध्वनि में जिस मोक्षमार्ग का उपदेश दिया है उस मोक्षमार्गरूप धर्म की मुख्य उपासना निर्ग्रन्थ मुनिवरों को होती हैं और उसके एक अंश की उपासना श्रावक-गृहस्थ को होती है। उस मुनिधर्म या श्रावकधर्म दोनों में सम्यग्दर्शन तो मूलभूत होता ही है । जीवअजीवादि नवतत्त्वों के स्वरूप का ज्ञान और उसमें शुद्ध द्रव्य-पर्यायरूप जीवतत्त्व की अनुभूतिरूप श्रद्धान, वह सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन है। भगवान धर्मनाथ ने सम्यग्दर्शन जिसका मूल है, ऐसे चारित्रधर्म का उपदेश भी दिया। सम्यग्दर्शन की || १४
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy