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________________ २०२|| ज्ञान प्रगट करके तीर्थंकर परमात्मा बन गये। ‘पौष शुक्ला पूर्णिमा' को इन्द्रों द्वारा प्रभु के केवलज्ञान कल्याणक का भव्य महोत्सव मनाया गया। रत्नपुरी के भाग्यवान जीवों ने अपनी नगरी में तीर्थंकर प्रभु के चार कल्याणक प्रत्यक्ष देखे। उनमें भी जन्मकल्याणक की अपेक्षा केवलज्ञान-कल्याणक की विशेषता थी; क्योंकि जन्मकल्याणक के समय रत्नपुरी के प्रजाजन मेरुपर्वत पर नहीं जा सके थे, जबकि इस केवलज्ञान कल्याणक के समय तो धर्मनाथ भगवान की धर्मसभा में देवों के साथ मनुष्य और तिर्यंच भी आये और प्रभु की वाणी सुनकर धर्म प्राप्त किया। पहले मुनिदशा के समय मौनव्रत था, अब केवलज्ञान होने पर भगवान ने उस मौन को भंग कर दिया, उनकी दिव्यध्वनि खिरने लगी। यद्यपि वाणी निकलने पर भी भगवान तो मौन ही थे; क्योंकि एक तो उन्हें वचन संबंधी कोई विकल्प नहीं था और दूसरे उनके सर्वांग से ध्वनि खिरती थी, इसलिए ओष्ठ नहीं खुलते थे। धर्मनाथ तीर्थंकर के सान्निध्य में चेतनवन्त भव्यजीव तो धर्म प्राप्त करके आनन्द से खिल ही उठे थे। आकाश और पृथ्वी, वायु और वृक्ष भी हर्ष से रोमांचित हो गये थे। आकाश में वाद्य बजने लगे और पुष्पवर्षा होने लगी, वायु सुगन्धित हो गई, वृक्ष भी कल्पवृक्ष बनकर इच्छित पदार्थ देने लगे। अरे, वहाँ की वापिकाओं का जल भी इतना उज्वल-स्वच्छ हो गया कि उसमें मात्र अपना मुँह नहीं; किन्तु पूर्वभव भी दिखने लगे। प्रभु के आसपास का जल भी जब इतना पवित्र हो गया, तब वहाँ के जीवों का ज्ञान कितना पवित्र हुआ होगा? वहाँ पूर्व-पश्चिम या उत्तर-दक्षिण चारों दिशाओं में एक समान ही दिखता था। प्रभु का मुख चारों दिशाओं में होने पर भी उनका उपयोग कहीं चारों दिशाओं से एकसमान नहीं फिरता था, उपयोग तो अपने स्वरूप में ही लीन था। स्व में लीन होकर ही वे समस्त स्व-पर को जानते थे। ऐसा केवलज्ञान ही प्रभु का सर्वोत्कृष्ट अतिशय था। उसके अतिरिक्त अन्य अनेक अतिशय थे। ___अहा, प्रभु की महिमा का कितना वर्णन किया जाए ? उन परमात्मा की पूर्ण महिमा जानने के लिए। BREEFFFFy
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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