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________________ १९८ श ला का पु रु 6pm IF F 40 ष उ पश्चात् बालप्रभु को ऐरावत हाथी पर विराजमान करके मेरुपर्वत पर ले गये । मेरुपर्वत पर बालक का जन्माभिषेक करके इन्द्र ने आनन्दकारी ताण्डव नृत्य किया और पश्चात् स्तुति करके प्रभु का नाम 'धर्मकुमार' रखा। उनके चरण में वज्र का चिह्न था । इन्द्र तो प्रभु को सम्बोधन कर कहता है हे देव! स्वर्ग के देव और कोई इष्ट देव नहीं है; आप ही इष्टदेव हैं । हे धर्म प्रभो ! आपके धर्म का स्वीकार करने से यह जीव भवाटवी को पार करके मोक्षपुरी में पहुँच जाता है। हे प्रभो ! जिसने आपके वचनों का आस्वादन किया उसे अमृत का क्या काम है? जिसने हृदय में आपका चिन्तन किया एवं आपके द्वारा कथित स्वानुभूति का सुख प्राप्त कर लिया उसे सुख के लिए अब विषयों का क्या काम है ? प्रभो! आप ही हमारे लिए धर्म के दाता हो; इसलिए आप सचमुच धर्मनाथ हैं। इसप्रकार 'धर्मनाथ' नाम से सम्बोधन करके इन्द्र ने बाल- तीर्थंकर की स्तुति की। इसप्रकार आनन्दपूर्वक मेरु पर अभिषेक और स्तुति करने के पश्चात् जिनेन्द्रप्रभु की शोभायात्रा सहि र्द्ध इन्द्र रत्नपुरी में लौटा; वहाँ माता-पिता एवं प्रजाजनों के समक्ष पुनः बाल- तीर्थंकर के जन्म का भव्य | महोत्सव मनाया। रत्नपुरी के हर्ष का पार नहीं था। जबकि उन अवधिज्ञानी एवं आत्मज्ञानी बाल-तीर्थंकर की ज्ञानचेतना | तो हर्ष से पार तथा पुण्ययोग से भी अलिप्त वर्तती थी । धन्य थी धर्मकुमार की धर्मचेतना! उनका अवतार होते ही देश के प्रजाजन निरोग हो गये थे । अहा, तीर्थंकर का अवतार जगत में किसे सुख का निमित्त नहीं | होता ? सचमुच तीर्थंकर का जन्म त्रिलोक आनन्दकारी है; उससमय सभी जीव बैरभाव छोड़कर एक-दूसरे | के मित्र बन गये थे । तीर्थंकररूपी धर्मरत्न के समागम से उस नगरी का 'रत्नपुरी' नाम वास्तव में सार्थक हो गया था। उनके प्रताप से नगरी में चारों ओर रत्न बिखरे पड़े थे, तथापि सब लोगों का चित्त उन जड़रत्नों में नहीं; किन्तु चेतनवन्त 'धर्मरत्न' में ही लगा हुआ था । इन्द्र तो एकसाथ हजार नेत्र बनाकर प्रभु को निरखता हुआ आनन्द से नाच उठता था। बाल- तीर्थंकर धर्मनाथ को देख-देखकर सभी जीव परमतृप्ति का अनुभव कर रहे थे । ती थं क र ध र्म ना थ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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