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________________ ला का | समस्त प्रजाजन भी आनन्दित हो गये और सर्वत्र महान धर्मोत्सव का वातावरण छा गया। भानुसेन और | रानी सुप्रभा को सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति तो हुई ही पुत्र की भी निकट भविष्य में प्राप्ति होगी । अहा, उनके | हर्ष का क्या कहना ! और इससे भी महान जो राग बिना अतीन्द्रिय आनन्द का अनुभव हुआ उसका तो | कहना ही क्या ? वह तो वचनातीत था । उन्हें प्रतीति हो गई कि संसार में पुत्रसुख की अपेक्षा सम्यक्त्व का सुख महान है और वही सच्चा सुख है। ऐसे अतीन्द्रिय सुख के विश्वासपूर्वक उसी क्षण उन्हें सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई । स्त्री पर्याय में जन्म लिया तब तो वे मिथ्यादृष्टि थीं; परन्तु आज तीर्थंकर की माता बनने | की विशिष्ट पात्रता होने से सम्यक्त्व प्राप्त करके पवित्र हुईं । तीर्थंकर के समान धर्मरत्न जिस पात्र में रखा हो, वह तो सम्यक्त्व से पवित्र होगा ही न ! उनका आत्मा और शरीर दोनों पवित्र थे, अशुचिरहित थे । (१९५ श पु 6 m F F 90 रु ष उ रा र्द्ध इसप्रकार सम्यग्दृष्टि माता और उसकी कोंख में सम्यग्दृष्टि पुत्र का अवतरण - यह जानकर धर्मात्मा भानुराजा को महान प्रसन्नता हुई; साथ ही उन्हें एक जिज्ञासा जागृत हुई, इसलिए मुनिराज से पूछा – “हे स्वामी ! हमारे घर में तीर्थंकर रूप में अवतरित होनेवाला वह जीव वर्तमान में कहाँ विराजमान है ? और पूर्वभव में उसने ऐसी कौन-सी साधना की, जिससे वह तीर्थंकर होगा ? कृपा करके अपने दिव्यज्ञान से जानकर हमें बतलायें ।' ती र्थं ध श्री मुनिराज वैसे तो अवधिज्ञान का उपयोग जहाँ-तहाँ नहीं करते; परन्तु विशिष्ट प्रयोजन समझकर एक | तीर्थंकर आत्मा के पूर्वभव जानने के लिए उन्होंने क्षणभर अवधिज्ञान का उपयोग लगाया और प्रसन्नतापूर्वक कहा - "हे राजन् सुनो! वे होनेवाले तीर्थंकर वर्तमान में 'सर्वार्थसिद्धि' स्वर्गलोक में विराजते हैं और वहाँ उनकी छह मास आयु शेष है। छह मास पूर्ण होने पर वे वहाँ से चयकर रत्नपुरी में तुम्हारे यहाँ अवतरित ना होंगे। तुम शीघ्र ही अनेक आश्चर्यजनक चिह्न देखोगे ।" र्म थ पर्व १४ राजा-रानी तथा लाखों प्रजाजन अति हर्षपूर्वक मुनिराज के श्रीमुख से धर्मनाथ तीर्थंकर की आनन्दकारी | कथा सुन रहे हैं। मुनिराज ने कहा - "हे राजन् ! इससे पूर्वभव में वे भव्यात्मा विदेहक्षेत्र की सुसीमा नगरी
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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