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________________ श ९९१ || पाँच इन्द्रियों के बाह्य विषय यद्यपि छूट गये हैं; परन्तु वह जीव दुःखी नहीं है, परन्तु अन्तर में उसे एक प्रकार | की शान्ति का / सुख का वेदन ही होता है। वह आत्मा में अधिक गहराई तक उतरकर तन्मय हो तो उसे अतीन्द्रिय सुख का वेदन भी होगा; वही मोक्षसुख का स्वाद है । इसप्रकार विषयों के बिना अकेले आत्मा से मोक्षसुख का अनुभव होता है। आत्मा द्वारा होनेवाला ऐसा सुख ही नित्य रहनेवाला परमार्थ सुख है । स्वसंवेदन से मुझे ऐसे सुख की प्राप्ति हुई है और उसकी पूर्ण साधना के लिए सर्व परिग्रह छोड़कर मैं आज वन में जाता हूँ। जिन्हें मोक्षसुख साधने की अभिलाषा हो, वे भी मेरे साथ चलें।" ला का पु रु pm F F ष उ त्त रा र्द्ध वैराग्यवन्त महाराजा की ऐसी सरस बात सुनकर समस्त सभाजन प्रसन्न हुए और जब भावी तीर्थंकर उन महाराजा दशरथ ने जिनदीक्षा हेतु वनगमन किया, तब हजारों प्रजाजन भी उनके साथ वन में गये । वहाँ श्री | विमलवाहन भगवान के निकट सबने जिनदीक्षा धारण की। पश्चात् दशरथ मुनिराज ने रत्नत्रयसहित उत्तम तप किया; उत्तमक्षमादि दसधर्मों की आराधनापूर्वक, दर्शनविशुद्धि, पंचपरमेष्ठी की भक्ति आदि गुणों का भी पालन किया और तीर्थंकर प्रकृति बांधी। अन्त में समाधिमरण करके सर्वार्थसिद्धि में देव हुए। वे देव आत्मज्ञानी थे, उन्होंने मुनिदशा में परम - वीतरागी शान्ति का अनुभव किया था; इसलिए | सर्वार्थसिद्धि के देवविमान में असंख्यात वर्षों तक रहने पर भी उनकी चित्तवृत्ति शान्त थी; देवियों के बिना भी वे महान सुखी थे । विषयों की वासना अथवा बाह्य विषयों के बिना भी आत्मा स्वयं उत्कृष्ट सुखरूप परिणमित हो सकता है - यह बात उनको 'अनुभवसिद्ध' थी। वे सदा अपने जैसे सर्वार्थसिद्धि के देवों से आत्मतत्त्व की अद्भुत महिमा की चर्चा और उसका चिन्तन करते थे । वे आत्मिकसुख से ही सुखी थे । | उनका जीवन शुक्ललेश्यायुक्त अत्यन्त शान्त था । अनेक असंख्यात वर्षों तक आत्मा की आराधना सहित वे सर्वार्थसिद्धि में रहे । सर्वार्थसिद्धि में जब उनकी आयु के छह माह शेष रहे, तब भरतक्षेत्र की रत्नपुरी नगरी में एक सुन्दर | घटना हुई; जो इसप्रकार है - ती र्थं र ध र्म ना थ पर्व १४
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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