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________________ किया जायेगा । यद्यपि आचार्यों द्वारा मूलगुणों की आठ संख्या को कायम रखने के प्रयास होंगे, पर अन्ततः | वह निर्वाह हो नहीं सकेगा। अत: कहीं-कहीं ६, ७, ९ एवं १२ संख्या भी होगी। फिर भी अधिकांश आचार्यों के द्वारा सभीप्रकार के अहिंसाप्रधान दैनिक आचरण को मूलगुणों में अन्तर्भूत करने का प्रयास किया जायेगा। ____ उपर्युक्त मूलगुणों के समन्वयात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए राजवार्तिक के हिन्दी टीकाकार अपना निम्नांकित मन्तव्य प्रगट करेंगे - ___“किसी शास्त्र में तो पाँच अणुव्रत व मद्य-मांस-मधु के त्याग को आठ मूलगुण कहा जायेगा तथा किसी शास्त्र में तीन प्रकार के मद्य-मांस-मधु व पाँच उदुम्बर फल (बड़, पीपल, ऊमर, पाकर व कठूमर) के त्याग को अष्ट मूलगुण कहेंगे। किसी अन्य शास्त्रों में अन्य प्रकार के मूलगुण कहेंगे । सो यह तो विवक्षा का भेद है। वहाँ ऐसा समझना कि स्थूलरूप से पाँच पापों का ही त्याग कराया है। | पाँच-उदुम्बर फलों के त्याग में द्वि-इन्द्रिय आदि त्रसजीवों के भक्षण का त्याग हुआ, शिकार के त्याग || में भी त्रसजीवों को मारने का त्याग हुआ। चोरी तथा परस्त्री के त्याग में भी अचौर्य व ब्रह्मचर्य व्रत हुए। जुआ आदि दुर्व्यसनों के त्याग में असत्य का त्याग हुआ तथा परिग्रह की अति चाह मिटी। मद्य, मांस व शहद के त्याग में भी त्रसजीवों की हिंसा का त्याग हुआ।" इसप्रकार जहाँ मद्य-मांस-मधु के साथ पाँच उदुम्बर फलों के त्याग की बात कही होगी, वहाँ पाँचों पापों का त्याग भी अनुक्त रूप से आ ही जायेगा और जहाँ पाँचों पापों के स्थूल त्याग की बात तो कही होगी, पर पाँच उदुम्बर फलों के त्याग की बात नहीं कही होगी, वहाँ भी पंच उदुम्बर फलों का त्याग भी अनकहे आ ही जायेगा; क्योंकि जिसने पापों के त्याग में हिंसा का त्याग कर दिया, वह त्रस जीवों से भरे पंच उदुम्बर फल कैसे खा सकता है ? इसीप्रकार सप्तव्यसन, रात्रि भोजन, बिना छना जल आदि के संदर्भ में भी समझ लेना चाहिए। 4ER EFF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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