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________________ EFFEE IFE 19 "उदुम्बराणि पंचैव, सप्तव्यसनान्यपि । वर्जयेत् यः सः सागारो, भवेद् दार्शनिकाह्वय ।। - गुणभूषण श्राकाचार, अ.३, श्लोक ४ जो जीव पाँच उदुम्बर फलों का और सातों ही व्यसनों का त्याग करता है, वह दार्शनिक श्रावक है।" “अष्टमुलगुणोपेतो, द्यूतादि व्यसनोज्झितः। नरो दार्शनिकः प्रोक्त: स्याच्चत्सद्दर्शनान्वितः।। - लाटीसंहिता, प्र.सर्ग, श्लोक-६१ जो मनुष्य सम्यग्दर्शन सहित अष्ट मूलगुणधारी एवं सप्त व्यसनों का त्यागी हो, उसे दार्शनिक श्रावक या दर्शन प्रतिमाधारी श्रावक कहा गया है।" "मद्य-मांस-मधु रात्रिभोजन क्षीरवृक्ष फल वर्जनं त्रिधा। कुर्वते व्रतजिघृक्षया बुधास्तत्र, पुष्यति निवेशते व्रतं ।। - अमितगति श्रा., परि.५, श्लो. १ चतुरजन मद्य-मांस-मधु, रात्रिभोजन और क्षीरोवृक्षों का मन-वचन-काय से त्याग करते हैं; क्योंकि इनके त्याग करने से व्रत परिपुष्ट होते हैं, धर्म धारण की पात्रता प्रगट होती है।" उपर्युक्त श्रावकाचारों के अतिरिक्त ९ वीं सदी का वरांगचरित, १२वीं सदी का पूज्यपाद श्रावकाचार, १५वीं सदी का प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, १६वीं सदी का धर्मसंग्रह श्रावकाचार एवं व्रतोद्योतन श्रावकाचार, १७वीं सदी का श्रावकाचारसारोद्धार आदि और भी अनेक श्रावकाचार होंगे; जिनमें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मद्य-मांस-मधु, पाँच-उदुम्बर फलों एवं सप्त व्यसनों के त्यागरूप मूलगुणों का उल्लेख होगा। इसप्रकार हम देखते हैं कि जैन वाङ्गमय में चरणानुयोग का ऐसा कोई शास्त्र होगा, जिसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से श्रावक के आठ मूलगुणों की चर्चा न हो तथा इन आठों मूलगुणों में ही श्रावक के योग्य स्थूलरूप से अहिंसक आचरण को सम्मिलित न किया गया हो। तात्पर्य यह है कि सभी श्रावकाचारों में अहिंसक आचरण की मुख्यता से ही आठ मूलगुणों का विधान ||
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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