SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BREPF F_F 13 स्थूल हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह से तथा जुआ, मांस और मद्य से विरत होना गृहस्थों के आठ मूलगुण हैं।" "मधुनो-मद्यतो-मांसाद् द्यूततो रात्रिभोजनात् । वेश्या संगमनाच्चास्य, विरतिनियमः स्मृतः।। - पद्मचरित, पर्व १४, श्लोक-२३ मद्य-मांस-मधु, छूत, वेश्या तथा रात्रिभोजन से विरक्त होना एवं अनन्तकाय आदि का त्याग करना नियम कहलाता है।" आचार्य रविषण के उपर्युक्त कथन का ही समर्थन करते हुए वसुनन्दि श्रावकाचार में अनन्तकाय वनस्पति के त्याग पर विशेष बल दिया जायेगा। "पंचुदम्बर सहियाई सत्तवि विसणाई जो विवजेई। सम्मत्त विसुद्ध मई, सो दंसण सावओ भणिओ।। उंबर बड़ पिप्पल, पिंपरीय संधाण तरूपसूणाई। णिच्चं तस संसिद्धाइ, ताई परिवजियब्बाइ।। जूयं मज मंस, वेसा पारद्धि-चोर-परयारं । दुग्गइ गमणस्सेदाणि, हेउ भूदाणि पावाणि ।। - वसुनन्दि श्रावकाचार, ५७, ५८,५९ सम्यग्दृष्टि जीवों के पाँच उदुम्बर फलों सहित सातों व्यसनों का त्याग होता है। ऊमर, बड़, पीपल, कठूमर और पाकर तथा संधानक (अचार) और वृक्षों के फूल नित्य त्रसजीवों से भरे हुए रहते हैं; इसलिए इन सबका त्याग करना चाहिए। जुआ खेलना, शराब पीना, मांस खाना, वेश्यागमन, शिकार खेलना, चोरी करना एवं परदार सेवन करना - ये सातों व्यसन दुर्गति गमन के कारण हैं।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy