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“अथ मद्य-पला-क्षौद्र, पंचोदुम्बर वर्जनम् ।
व्रतं जिघृक्षुणा पूर्व, विधातव्यं प्रयत्नतः ।।-श्रावकाचार सारोद्धार, अ.३, श्लोक ६ श्रावक के व्रतों को ग्रहण करने के इच्छुक पुरुषों को सबसे पहले मद्य-मांस-मधु और पाँच उदुम्बर फलों के खाने का प्रयत्न पूर्वक त्याग करना चाहिए।"
“मद्य-मांस-मधु त्यागैः सहाणुव्रत पंचकम् ।
अष्टौ मूलगुणानाहुर्गृहिणां श्रमणोत्तमाः।। - रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक ६६ मद्य-मांस-मधु के त्याग के साथ पाँचों पापों के स्थूल त्याग को गृहस्थों के आठ मूलगुण कहे हैं।"
"मद्य-मांस-मधु त्याग, संयुक्ताणुव्रतानि नुः ।
अष्टौ मूलगुणा: पंचोदुम्बरैश्चार्भकेष्वपि ।। - रत्नमाला, श्लोक १९ मद्य-मांस-मधु के त्याग सहित पाँचों अणुव्रत ही मनुष्यों के आठ मूल गुण कहे गये हैं। पाँच उदुम्बर | फलों के साथ मद्य-मांस-मधु के त्याग रूप आठ मूलगुण तो अबोध बालक भी धारण कर लेते हैं।"
"मधु-मांस परित्यागः पंचोदुम्बर वर्जनम् ।
सिादिविरतिश्चास्य व्रतं स्यात् सार्वकालिकम् ।। - महापुराण, पर्व ३८, श्लोक १२२ गृहस्थ के शहद, मांस एवं पाँच उदुम्बर फलों का त्याग तथा हिंसादि पाँचों पापों से विरक्तिरूप सार्वकालिक-औत्सर्गिक व्रत तो जीवनपर्यन्त रहते हैं।"
“हिंसादि पंच दोष विरहितेन द्यूत मद्य मांसानि परिहर्तव्यानि । हिंसादि पाँच पापों से रहित श्रावक को छूत, मद्य और मांस का परिहार करना चाहिए।"
"हिंसाऽसत्यस्ते याद्ब्रह्म परिग्रहाच्च बादरभेदात् ।। द्यूतान्मांसान्मधाद्विरति, गृहिणोऽष्ट सन्त्यमीमूलगुणाः।। - चारित्रसार, श्लोक-१५ ॥