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“मद्यं -मांसं क्षौद्रं, पंचोदुम्बर फलानि यत्नेन् ।
हिंसा व्युपरतकामै: मोक्तव्यानि प्रथमेव ।। - पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक - ६१ प्राणियों के प्राण पीड़नरूप द्रव्यहिंसा का त्याग करने के इच्छुक जनों को प्रथम ही प्रयत्नपूर्वक मद्य
मांस-मधु और पाँच उदुम्बर फलों का त्याग करना चाहिए ।"
" मद्य - मांस-मधु त्यागः सहोदुम्बरः पंचकैः।
अष्टावेते गृहस्थानामुक्ता मूलगुणा श्रुते।। - यशस्तिलक चम्पू, श्लोक - २५५
आगम में पाँच उदुम्बर फल एवं मद्य-मांस-मधु के त्याग को गृहस्थों के आठ मूलगुण बतलाये हैं । " “तत्रादौ श्रद्धधज्जैनीमाज्ञां हिंसामपासितुम् ।
मद्य-मांस-मधुन्युज्झेत, पंच क्षीरफलानि च । - सागारधर्मामृत, अ. २२, श्लोक
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सबसे पहले जिनेन्द्रदेव की आज्ञा का श्रद्धान करते हुए हिंसा का त्याग करने के लिए मद्य-मांस-मधु और पाँच क्षीरफलों का त्याग करना चाहिए।"
" मद्यं -मांस तथा क्षौद्रमथोदुम्बर पंचकम् ।
वर्जयेच्छ्रावको धीमान् केवलं कुलधर्मवित् ।। - लाटी संहिता, अ. १, श्लोक -५ केवल अपने कुलधर्म की मर्यादा को जाननेवाले श्रावकों को भी मद्य-मांस-मधु एवं पंच- उदुम्बर फलों का त्याग तो करना ही चाहिए।"
"मज्जु - मंसु - महु - परिहरहि, करि पंचुबर दूरि ।
आयहं अन्तरि अट्टहानि तस उप्पज्जई भूरि ।। - सावयधम्म दोहा, गाथा - २२ मद्य-मांस-मधु का परिहार करो, पाँच उदुम्बर फलों को दूर से ही त्यागो; क्योंकि इन आठों के अन्दर त्रसजीव होते हैं।"
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