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________________ BREFEF FF is दया धरम है दान धरम है, प्रभु पूजा धर्म कहाता है। सत्य-अहिंसा त्याग धरम, जन सेवा धर्म कहाता है। ये लोक धरम के विविध रूप, इनसे जग पुण्य कमाता है। शुद्धातम का ध्यान धरम, बस यही एक शिवदाता है। वीतराग विज्ञानमय धरमनाथ ध्रुवधाम । धरम धुरंधर परम गुरु शत्-शत् करूँ प्रणाम ।। हे धर्मनाथ भगवान! आप रत्नत्रयरूप धर्म के धारक, धर्म के दस लक्षणों के धारक एवं वस्तुस्वभाव धर्म के धारक और इन सबके प्रचारक-प्रसारक हैं; अत: आपकी जय हो । यद्यपि ये सब धर्म के स्वरूप हमारे आत्मा में भी हैं; परन्तु अभी आप जैसे प्रगट पर्याय में नहीं हैं, अतएव हमें आपकी शरण प्राप्त हो । एतदर्थ हम आपके चरणों में शत-शतबार नतमस्तक हैं। तीर्थंकर भगवान धर्मनाथ के प्रेरणाप्रद आदर्श पूर्वभवों का परिचय कराते हुए सर्वज्ञदेव की परम्परा से प्राप्त आचार्यों ने कहा है कि - "इसी भरत क्षेत्र के चौबीस तीर्थंकरों में धर्मनाथ पन्द्रहवें तीर्थंकर थे। उनका चरण चिह्न वज्र था। पूर्व भव में वे दशरथ नामक राजा थे और धातकी खण्ड के विदेह क्षेत्र में सुसीमा नगरी में राज्य करते थे। एक राजा के वैभव के अनुसार उनको भी यद्यपि सभी सुख-सुविधायें प्राप्त थीं; परन्तु उनका चित्त सदैव धर्म की उपासना/आराधना में ही अधिक रहता था। एकबार चैत्र की पूर्णिमा को रात्रि में चन्द्र की ओर निहार रहे थे कि देखते ही देखते उसको चन्द्र-ग्रहण लग गया। बस, उसे देखते ही राजा दशरथ को वैराग्य हो गया। १४
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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