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९८६ | | बताती है कि यह कार्य इस द्रव्य में ही होगा, अन्य द्रव्य में नहीं और पर्यायशक्ति यह बताती है कि विवक्षित कार्य विवक्षित समय में ही होगा; अतः न तो द्रव्यशक्ति महत्त्वहीन है और न पर्यायशक्ति ही; दोनों का ही महत्त्व है। पर, ध्यान रहे काल की नियामक पर्यायशक्ति ही है । काल का दूसरा नाम भी पर्याय है । यह पर्यायशक्ति अनन्तपूर्वक्षणवर्तीपर्याय के व्ययरूप एवं तत्समय की योग्यतारूप होती है। अतः इन दोनों की पु ही क्षणिक उपादान संज्ञा है। इसीलिए क्षणिक उपादान को कार्य का नियामक कहा गया है ।
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यदि त्रिकाली उपादान को भी शामिल करके बात कहें तो इसप्रकार कहा जायेगा कि पर्यायशक्ति युक्त द्रव्यशक्ति कार्यकारी है, पर इसमें भी नियामक कारण के रूप में तो पर्यायशक्तिरूप क्षणिक उपादान ही रहा ।
यदि निमित्त को भी इसमें शामिल करके बात करनी है तो इसप्रकार कहा जाता है कि सहकारीकारण | सापेक्ष विशिष्ट पर्यायशक्ति से युक्त द्रव्यशक्ति ही कार्यकारी है ।
धर्मोपदेश में वस्तु का प्ररूपण करते हुए भगवान अनन्तनाथ ने साढ़े सात लाख वर्ष तक विहार किया और करोड़ों जीवों को मोक्षमार्ग में लगाया । अन्त में जब एक मास की आयु शेष रही तब सम्मेदशिखर की स्वयंभू टोंक पर आकर स्थिर हो गये वहाँ उनकी विहार और वाणी रुक गये ।
चैत्र कृष्णा अमावस्या को सम्पूर्ण योग निरोध करके भगवान अनन्तनाथ तीर्थंकर मोक्षपद को प्राप्त हुए। इन्द्रों ने मोक्षकल्याणक महोत्सव मनाकर पूजा की।
प्रत्येक आत्मा में ऐसे अनन्तधर्म हैं, वे पर से भिन्न हैं- ऐसे एकत्व-विभक्त आत्मा का स्वरूप समझाने वाले तथा अशुद्धभावों से छुड़ाकर शुद्धभावों को प्रगट करनेवाली भगवान अनन्तनाथ की स्याद्वादशैली | सदा प्रकाशमान हो । अनन्त नयात्मक स्वानुभव प्रमाण द्वारा अनन्त चैतन्य निधान की प्राप्ति करानेवाले अनन्तनाथ जिनका जीवन तो धन्य हुआ ही, उनके जीवनदर्शन से पाठकों का जीवन भी धन्य हो जाता है । अनेकान्तस्वरूप आत्मा के अनन्त धर्मों को प्रकाशित करके अनन्त धर्मों की शुद्धि सहित जो अनन्तनाथ | प्रभु अब भी सिद्धालय में विराजमान हैं, उन शुद्धात्मा- सिद्धात्मा को शत् शत् नमन ।
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