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उत्तर - हाँ, कारण, प्रत्यय, हेतु, साधन, सहकारी, उपकारी, उपग्राहक, आश्रय, आलम्बन, अनुग्राहक, उत्पादक, कर्ता, प्रेरक हेतुमत, अभिव्यंजक आदि नामान्तरों का प्रयोग भी आगम में निमित्त के अर्थ में हुआ है।
प्रश्न - क्या निमित्त कई प्रकार के होते हैं, निमित्तों के कुल कितने भेद हैं और उनका क्या स्वरूप है?
उत्तर - वैसे तो निमित्त असंख्य प्रकार के हो सकते हैं। जितने कार्य उतने ही उनके निमित्त; परन्तु आगम में स्थूलरूप से उन्हें आठ वर्गों में विभाजित किया गया है। जिन्हें रागादि विभावभावरूप कार्यों के सम्पन्न होने में निमित्त कारणों के रूप में इसप्रकार खोज सकते हैं -
१. रागादि का अन्तरंग निमित्त : मोहनीय कर्म का उदय । २. बहिरंग निमित्त : स्त्री, पुत्र, धन, धान्य, रोग, शत्रु-मित्र आदि बाह्य वस्तुएँ। ३. प्रेरक निमित्त : इच्छा शक्तिवाले जीव तथा गमन क्रियावाले जीव पुद्गल। ४. उदासीन निमित्त : निष्क्रिय धर्म, अधर्म, आकाश, काल तथा इच्छा व राग रहित पर-पदार्थ ।
५. बलाधान निमित्त : बल आधान=बल का धारण । उपकार, आलम्बन आदि इसके पर्यायवाची हैं। निष्क्रिय होने पर भी जिनका क्रियाहेतुत्व नष्ट नहीं होता उसे बलाधान कहते हैं। प्रेरणा किए बिना सहायक मात्र होने से इसे उदासीन भी कहते हैं। ___ बलाधान निमित्त को समझाते हुए कहा गया है - जैसे अपनी जांघ के बल चलनेवाले पुरुष को यष्टि (लकड़ी) का आलंबन बलाधान निमित्त है। वस्तुतः निष्क्रिय निमित्तों का ही एक नाम बलाधान है।
६. प्रतिबन्धक : रुकावट करनेवाले या बाधक निमित्त । जैसे- सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में मिथ्यात्व कर्म का उदय तथा अज्ञानी गुरु आदि का मिलना।
७. अभावरूप निमित्त - समुद्र की निस्तरंग दशा में हवा का न चलना । तत्त्वोपलब्धि के लिए तदनुकूल सत्समागम का अभाव ।
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