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- 'यः परिणमति सः कर्ता ।' अतः भ्रमित नहीं होना चाहिए ।
कहा भी है।
प्रश्न- निमित्त कारण किसे कहते हैं ?
उत्तर - • जो पदार्थ स्वयं तो कार्यरूप परिणमित न हों; परन्तु कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल होने से जिन पर कारणपने का आरोप आता है, उन्हें निमित्त कारण कहते हैं ।
प्रश्न - निमित्त - उपादान में परस्पर क्या अन्तर है ?
उत्तर - जिसके बिना कार्य हो नहीं और जो कार्य को करे नहीं, वह निमित्त है तथा जो स्वयं समर्पित होकर कार्यरूप परिणत हो जाय, वह उपादान है। दूसरे शब्दों में कहें तो जिसके साथ कार्य की बाह्य व्याप्त हो वह निमित्त तथा जिसके साथ कार्य की अन्तरंग व्याप्ति हो वह उपादान है।
प्रश्न - निमित्तों का ज्ञान क्यों आवश्यक है ?
उत्तर - निमित्तों का यथार्थ स्वरूप जाने बिना निमित्तों को कर्ता माने तो श्रद्धा मिथ्या है तथा निमित्तों को माने ही नहीं तो ज्ञान मिथ्या है।
प्रश्न – क्या निमित्तों की पृथक् सत्ता है, स्वतंत्र अस्तित्व है ? यदि है तो कृपया बताइये द्रव्यों में कौन द्रव्य उपादान व कौन द्रव्य निमित्त है ?
उत्तर - द्रव्यों में ऐसा कोई बंटवारा नहीं है। जो द्रव्य पर-पदार्थों के परिणमन में निमित्त रूप हैं, वे सभी निमित्तरूप द्रव्य स्वयं के लिए उपादान भी हैं। उदाहरणार्थ- जो कुम्हार को घट कार्य का निमित्त है, वही कुम्हार अपनी इच्छारूप कार्य का उपादान भी तो है ।
निमित्त व उपादान कारणों के अलग-अलग गाँव नहीं बसे हैं। जो दूसरों के कार्य के लिए निमित्त हैं, वे ही स्वयं अपने कार्य के उपादान भी हैं ।
प्रश्न- क्या निमित्त कारण के अन्य नाम भी हैं ?
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