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| इस प्रक्रिया से पार होती हुई ज्ञानपर्याय जब पर और पर्याय से पृथक् त्रिकाली ध्रुव निज भगवान आत्मा
को ज्ञेय बनाती हैं, तभी आत्मानुभूति प्रगट हो जाती है, इसे ही सम्यग्दर्शन कहते हैं। यह सम्यग्दर्शन ही | मोक्षमार्ग की प्रथम सीढ़ी है; सुख-शान्ति प्राप्त करने का अमोघ-उपाय है।
इसप्रकार आध्यात्मिक सुख-शान्ति का मूल उपाय निमित्तोपादान संबंधी सच्ची समझ ही है। न केवल आत्मिक बल्कि लौकिक, सुखशान्ति का उपाय भी यही है। ___ प्रश्न ५ - आत्मा में सम्यग्दर्शन (कार्य) निष्पन्न होने की प्रक्रिया क्या है ?
उत्तर - कार्य-कारण के अनुसार ही निष्पन्न होता है। कहा भी है - 'कारणानुविधायित्वादेवकार्याणि तथा कारणानुविधायीनि कार्याणि । जैसे - जौ से जौ ही उत्पन्न होते हैं। स्वर्ण से आभूषण ही बनते हैं, वैसे ही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र जीव से ही उत्पन्न होते हैं, देव-शास्त्र-गुरु से नहीं। देव-शास्त्र-गुरु तो निमित्तमात्र हैं, वे सम्यग्दर्शनरूप कार्य के कारण नहीं हैं।
प्रश्न ६ - कारण किसे कहते हैं ?
उत्तर - कार्य की उत्पाद सामग्री को कारण कहते हैं। कार्य के पूर्व जिसका सद्भाव नियत हो और जो किसी विशिष्ट कार्य के अतिरिक्त अन्य कार्य को उत्पन्न न करे । वस्तुतः यही कार्य की उत्पादक सामग्री है, जिसे कारण कहते हैं। कारण के मूलत: दो भेद हैं - १. उपादान कारण, २. निमित्त कारण ।
इन दोनों कारणों के अनेक भेद-प्रभेद हैं। प्रश्न ७ - निमित्तों में कर्तृत्व के भ्रम का कारण क्या है और उसका निवारण कैसे हो ?
उत्तर - कार्य के अनुकूल संयोगी पदार्थों की उत्पत्ति के समय अनिवार्य उपस्थिति होने से कार्य के अनुकूल होने से एवं उन्हें आगम में भी कारण संज्ञा प्राप्त होने से साधारण जन भ्रमित हो जाते हैं; परन्तु वे संयोगी पदार्थ कार्य के अनुरूप या कार्यरूप स्वयं परिणमित न होने से कर्ता नहीं हो सकते ।