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________________ ORE F IFE || के होने में अनेक कारण हो सकते हैं। उनमें कुछ कारण तो समर्थ एवं नियामक होते हैं और कुछ आरोपित । | आरोपित कारण मात्र कहने से कारण हैं, उनसे कार्य निष्पन्न नहीं होता। उनकी कार्य के निकट सन्निधि मात्र होती है। जैनदर्शन में इन कारणों की मीमांसा - निमित्त व उपादान के रूप में होती है। प्रश्न - ये निमित्तोपादान अथवा कारण-कार्य क्या हैं, इनका ज्ञान क्यों आवश्यक है ? उत्तर - ये निमित्त-उपादान कार्य की उत्पादक सामग्री के नाम हैं; अत: इन्हें जिनागम में कारण के रूप में वर्णित किया गया है। इन निमित्तोपादान कारणों का यथार्थ स्वरूप जाने बिना कर्ता-कर्म संबंधी निम्नांकित अनेक भ्रान्तियों के कारण हमें वीतराग धर्म की प्राप्ति संभव नहीं है। जैसे - प्रथम तो निमित्तोपादान को जाने बिना स्वावलम्बन का भाव जाग्रत नहीं होता। दूसरे, पराधीनता की वृत्ति समाप्त नहीं होती। तीसरे, मोक्षमार्ग का सम्यक् पुरुषार्थ स्फुरायमान नहीं होता। चौथे, निमित्त-उपादान के सम्यक् परिज्ञान बिना जिनागम में प्रतिपादित वस्तुव्यवस्था को भी सम्यक् रूप में समझना संभव नहीं है। पाँचवे, इनके सही ज्ञान बिना या तो निमित्तों को कर्ता मान लिया जाता है या निमित्तों की सत्ता से ही इन्कार किया जाने लगता है। छठवें, इनके यथार्थ ज्ञान बिना वस्तुस्वातंत्र्य का सिद्धान्त एवं कार्य-कारण की स्वतंत्रता समझना सम्भव नहीं है। अत: इनका ज्ञान परम आवश्यक है। प्रश्न ३. - मोक्षमार्ग में इनके ज्ञान की उपयोगिता क्या है ? इनके समझने से धर्म संबंधी लाभ क्या है? उत्तर - निमित्तोपादान की यथार्थ समझ से तथा पर-पदार्थों के कर्तृत्व के अहंकार से उत्पन्न होनेवाला कषायचक्र सीमित हो जाता है, समता का भाव जाग्रत होता है। उदाहरणार्थ - + ENEF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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