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________________ वस्तु में सर्व गुण-धर्म एक समान, तन्मयरूप से विद्यमान हैं, उनमें कोई गौण नहीं है । वक्ता अपने अभिप्राय के अनुसार जब उनमें से किसी एक को मुख्य करता है, उसीसमय उसके ज्ञान में दूसरा पक्ष गौणरूप से विद्यमान रहता है, उनका निषेध नहीं है। प्रत्येक वस्तु द्रव्य-गुण- पर्याय स्वरूप तथा उत्पादव्यय-ध्रुव-स्वरूप स्वाधीन है। उसके द्रव्य-गुण-पर्याय में किसी का हस्तक्षेप नहीं है, अपने स्वाधीन स्वरूप | को समझनेवाला जीव अपने-अपने धर्म स्वभावों से ही तृप्त रहता है । पु रु प्रश्न - इस वस्तु व्यवस्था का स्वरूप क्या है ? ष उ त्त रा उत्तर - जैनदर्शन के अनुसार छह द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं। छह द्रव्यों में जीव द्रव्य अनन्त हैं, पुद्गल द्रव्य अनन्तानन्त हैं, धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य एवं आकाश द्रव्य एक-एक हैं। काल द्रव्य असंख्यात हैं। इन सभी द्रव्यों के समूहरूप यह विश्व अनादि-अनन्त, नित्य परिणमनशील एवं स्वसंचालित है । इन द्रव्यों का परस्पर एकक्षेत्रावगाह संबंध होने पर भी ये सभी द्रव्य पूर्ण स्वतंत्र हैं, स्वावलम्बी हैं । कोई भी द्रव्य किसी अन्य द्रव्य के आधीन नहीं है। वस्तुत: इन द्रव्यों का परस्पर में कुछ भी संबंध नहीं है । इस | विश्व को ही लोक कहते हैं । इसीकारण आकाश के जितने स्थान में ये छह द्रव्य स्थित हैं, उसे लोकाकाश कहते हैं। शेष अनन्त आकाश अलोकाकाश है। र्द्ध (१७४ श ला का विश्व का प्रत्येक द्रव्य या पदार्थ पूर्ण स्वतंत्र एवं परिणमनशील है। हमारा तुम्हारा आत्मा भी एक स्वतंत्र स्वावलम्बी द्रव्य है, वस्तु है, परिणमनशील पदार्थ है । स्वभाव से तो यह आत्मद्रव्य अनन्त गुणों का समूह | एवं अनन्तशक्ति सम्पन्न है, असीम सुख का समुद्र और ज्ञान का अखण्डपिण्ड है; परन्तु अपने स्वभाव का भान न होने से एवं पराधीन दृष्टि होने से अभी विभावरूप परिणमन कर रहा है; इसकारण दुःखी है । द्रव्यों या पदार्थों के इस स्वतंत्र परिणमन को पर्याय या कार्य कहते हैं। कर्म, अवस्था, हालत, दशा, परिणाम, परिणति भी कार्य के ही नामान्तर हैं; पर्यायवाची नाम हैं । सुख-दुःख का स्वभाव-विभावरूप कोई भी कार्य हो, वह बिना कारणों से नहीं होता और एक कार्य ती र्थं क र अ न ना थ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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