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________________ CREEFFFFy अचानक एक मंगलमय घटना घटी। ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी को अयोध्या के महाराजा अनन्तनाथ का जन्म दिवस था, उससमय उनकी आयु बाईस लाख पचास हजार वर्ष की हो गई थी। उनका जन्मोत्सव मनाने | के लिए देश-विदेश के हजारों राजा एक से बढ़कर एक भेंटें लेकर आये। महाराजा अनन्तनाथ राजमहल की छत से नगर की दिव्यशोभा का अवलोकन कर रहे थे। इतने में | आकाश में भारी गड़बड़ाहट के साथ प्रकाश की एक तेज रेखा खिची और उल्कापात हुआ। उसे देखते ही महाराजा अनन्तनाथ को वैराग्य हो गया। उन्हें पूर्वभव में जातिस्मरण ज्ञान हुआ और वे सोचने लगे - | "अरे! जिसप्रकार यह उल्कापात क्षणभंगुर है, उसीप्रकार ये सभी संयोग क्षणभंगुर हैं। एक मात्र सिद्धपद ही स्थिर है; अत: वही साधनेयोग्य है, एतदर्थ मैं शीघ्र ही इस राज्यसत्ता का त्यागकर मुनि होकर आत्माराधना करूँगा और मोक्ष को साधूंगा।" महाराजा के दीक्षा लेने के निश्चय से चारों ओर हलचल मच गई। देवों को भी ज्ञात हो गया; अत: | वे दीक्षा कल्याणक का महोत्सव मनाने आ गये । जन्म का उत्सव दीक्षाकल्याणक के उत्सव में परिवर्तित हो गया। ब्रह्मर्षि लौकान्तिक देवों ने प्रभु की स्तुति करके अचिन्त्य महिमावन्त वैराग्य का अनुमोदन किया। उसीसमय इन्द्र ‘संसारदत्ता' नामक पालकी लेकर आ पहुँचे। प्रभु ने उस पालकी में बैठकर तपोवन की ओर प्रयाण किया। जन्मोत्सव में आये हुए एक हजार राजा भी प्रभु के साथ तपोवन की ओर चले और उन्होंने भी प्रभु के साथ ही दीक्षा ले ली। अहा! एक तीर्थंकर के साथ जब हजार-हजार राजा दीक्षा लेकर आत्मध्यान करते होंगे, तब ध्यानस्थ मुनियों का वह दृश्य कैसा अद्भुत, अद्वितीय, शान्ति और प्रेरणादायक होगा। वह दृश्य देखकर वन के हिंसक पशु भी अहिंसक और शान्त हो जाते थे। इसप्रकार अनन्तनाथ अपने जन्म दिन पर ही दीक्षा लेकर आत्मध्यान में लीन हो गये। उनको तुरंत ही अनेक ऋद्धियों सहित मन:पर्यय ज्ञान प्रगट हो गया। दो दिन तक उपवास के पश्चात् मुनिराज अनन्तनाथ आहारचर्या हेतु साकेतपुरी पधारे। राजा विशाख ने उन्हें भक्तिपूर्वक प्रथम पारणा के रूप में आहार दान || १३ + ENEF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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