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१७.|| भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी में अबतक तीर्थंकर ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ और सुमतिनाथ श || - ये चार तीर्थंकर जन्म ले चुके हैं। अब ये अयोध्या में अवतरित होनेवाले पाँचवें तीर्थंकर होंगे। इसलिए ला | कुबेर ने पुरानी अयोध्या नगरी को यह नया रूप प्रदान किया है। स्वर्ग से इन्द्रों ने आकर माता-पिता का तथा गर्भस्थ तीर्थंकर के जीव का सम्मान किया और गर्भ कल्याणक महोत्सव मनाया।
ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी को अयोध्या में बालक अनन्तनाथ का जन्म हुआ। तेरहवें विमलनाथ तीर्थंकर के पश्चात् नौ सागरोपम के असंख्यात वर्षों के बाद चौदहवें तीर्थंकर का अवतार हुआ। उनके अवतार से असंख्य वर्षों तक भरतक्षेत्र में जैनधर्म का विच्छेद हो गया था। उनका अवतार होने से वह विच्छेद दूर हुआ
और पुन: जैनशासन का धर्मचक्र चलने लगा। तीर्थंकरों का अवतार धर्मप्रवर्तन के लिए होता है। ___ बालक तीर्थंकर को इन्द्रों द्वारा ऐरावत हाथी पर बिठाकर एवं सुमेरु पर्वत पर ले जाकर जन्माभिषेक किया गया। जन्मकल्याणक का मंगल महोत्सव मनाया गया। इन्द्र द्वारा 'अनन्तनाथ' नामकरण के साथ बालक की न केवल स्तुति की गई; बल्कि इन्द्र-इन्द्राणी ने हर्षोल्लास व्यक्त करते हुए ताण्डव नृत्य भी किया।
अनन्तनाथ की आयु तीस लाख वर्ष की थी। शरीर की ऊँचाई पचास धनुष थी। उनके चरण में सेही का चिह्न था। शरीर की वाल्यावस्था होने पर भी उनका आत्मा तो सम्यक्त्वादि गुणों से प्रौढ़ था। सप्त लाख पचास हजार वर्ष तक वे युवराज रहे, पश्चात् महाराज सिंहसेन ने युवराज अनन्तनाथ का राज्याभिषेक किया। अयोध्या में उन्होंने पन्द्रह लाख वर्ष तक राज्य किया। उससमय अयोध्या पूरे भारतवर्ष की राजधानी थी। वहाँ से अनेक तीर्थंकर और चक्रवर्ती सम्पूर्ण भारत पर राज्य करते आये हैं। तीर्थंकर अनन्तनाथ के राज्य में रहते हुए भी वे तो अधिकांश अपने चिदानन्द का ही आनन्द लेते थे। वे जानते थे कि यह भव भव बढ़ाने के लिए नहीं मिला; बल्कि भव का अभाव करने को मिला है। तद्भव मोक्षगामी तीर्थंकर अनन्तनाथ के राज्य में प्रजा सर्वप्रकार से सुखी थी। राजा अनन्तनाथ प्रजा पर शासन करते हुए आत्मानुशासन में ही अधिक समय बिताते थे।
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