SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६९ श ला का पु रु ष उ त्त ETUS रा र्द्ध (१३ अनन्त चतुष्टय आलम्बन से, जीते क्रोध काम कल्मष । भेदज्ञान के बल से जिसने, जीते मोह मान मत्सर ।। शुक्ल ध्यान से जो करते हैं, घाति-अघाति कर्म भंजन । ऐसे अनन्त नाथ जिनवर को, मन-वच-काया से वन्दन ।। ज्ञानानन्दमय चैतन्यतत्त्व का अनन्त वैभव बतलानेवाले, अनन्तचतुष्टयस्वरूप के धारक, अनन्तनाथ | तीर्थंकर की मन-वच - काय से वन्दना करते हुए उनके अवलम्बन से मैं अपने क्रोध-काम- कल्मश तथा | मोह - मान-मत्सर का अभाव करने के लिए उन अनन्तनाथ भगवान को बारम्बार स्मरण करता हूँ, नमन करता हूँ, जिन्होंने शुक्लध्यान के द्वारा घातिया एवं अघातिया कर्मों का क्षय किया है। यहाँ आचार्य गुणभद्र कहते हैं कि अनन्त भवचक्र का अभाव करनेवाले भगवान अनन्तनाथ पूर्व के | तीसरे भव में धातकी खण्ड में अरिष्ट नगरी के राजा पद्मरथ थे। राज्य वैभव के बीच रहते हुए भी उनका चित्त पापों से अलिप्त और पंचपरमेष्ठी की भक्ति में लीन रहता था। उनके महाभाग्य से उनके नगर में मुनिवरों का तथा केवली भगवन्तों का शुभागमन होता था । एक दिन अपनी गन्धकुटी (धर्मसभा) के साथ विहार करते हुए भगवान स्वयंप्रभ उनके नगर में पधारे । राजा पद्मरथ बड़ी धूमधाम से भगवान के दर्शनार्थ गये । अत्यन्त भक्तिपूर्वक केवली प्रभु के दर्शन किए। दर्शन | कर मन शान्त तो हुआ ही, उन्हें अपने सात भवों का ज्ञान भी हो गया । यद्यपि उनके भविष्य के दो भव ही शेष थे, इसलिए दो भव तो वे जाने और चार भव पूर्व के तथा एक वर्तमान का, इसतरह सात भव जान | लिए। उन सात में अन्तिम भव उनका स्वयं तीर्थंकर होने का था - ऐसा जानकर उन्हें परम प्रसन्नता हुई । 15 | न्त ना थ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy