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अपना उज्वल भविष्य जानकर उनके मन में अति उत्साह जागृत हो गया और उन दोनों भाइयों ने जिनदीक्षा धारण कर ली।
इस घटना से सिद्ध होता है कि अपना उज्वल भविष्य जानने से जीव स्वच्छन्दी नहीं होता; बल्कि उसका उसी ओर का पुरुषार्थ और अधिक हो जाता है। मनोवैज्ञानिक तथ्य भी यही है ।
वे दोनों भाई भगवान के गणधर बने और उसी भव से मोक्ष गये ।
भगवान विमलनाथ जब सौराष्ट्र पधारे तब द्वारावती नगरी में त्रिखण्डाधिपति 'धर्म' बलभद्र और स्वयंभू नारायण ने उनकी वन्दना की थी।
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इसप्रकार लाखों वर्ष तक करोड़ों जीवों के कल्याण में निमित्त बनकर जब उनकी आयु को एक माह | शेष रह गया तो वे सम्मेदशिखर की सुवीर टोंक पर पधारे। वहाँ उनका विहार और वाणी थम गये । वहाँ एक माह का योग निरोध कर छह हजार एक सौ मुनियों के साथ प्रतिमा योग धारण किया तथा चैत कृष्ण र्थं अमावस्या के दिन रात्रि के प्रथम भाग में अघातिया कर्मों का क्षय करके मुक्त हो गये । ॐ नमः । ·
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कला
जिन्हें देखकर -सुनकर हमारा मन मुदित होता है, चित्त चमत्कृत हो जाता है, हृदय में आनन्द की उर्मियाँ हिलोरे लेने लगती हैं, वाणी से वाह ! वाह ! के स्वर फूट पड़ते हैं; उन आनन्ददायक मानवीय मानसिक-वाचिक एवं कायिक अभिव्यक्तियों को ही तो लोकभाषा में कला कहा जाता है ।
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सुखी जीवन, पृष्ठ-१७
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