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________________ CREEFFFFy | पूछता हूँ कि कच्चा व पके दोनों ही प्रकार के दही छाछ से बने भोजन के न खाने से क्या हानि है? क्या उसके बिना जीवन संभव नहीं है ? जिसमें जरा भी शंका हो तो उसमें हमारा पक्ष निर्विवाद मुद्दे की ओर ढलना चाहिए, न कि विवादस्थ मुद्दे की ओर । अतः हमारा तो दृढ़ मत है कि त्रसघात से बचने के लिए | कच्चे-पके दोनों प्रकार के दही-छाछ से बने द्विदल पदार्थ त्यागने योग्य हैं। | प्रश्न - द्विदल अभक्ष्य के संदर्भ में केवल दूध, दही व छांछ को ही गोरस क्यों माना, घी भी तो गोरस है, घी को क्यों छोड़ दिया ? उत्तर - यहाँ इस संदर्भ में “गोरस" योग रूढ़ शब्द है, इसलिए गोरस शब्द का अर्थ दूध, दही व छांछ ही है। “गोरसेनक्षीरेण दध्ना तक्रेण च" - ऐसा सागार धर्मामृत की टीका में स्पष्ट उल्लेख है; अत: घी | मिश्रित द्विदल अन्न खाने से दोष नहीं है। जैनेतर ग्रन्थों में भी - “गोरस माम मध्ये तु, मुद्गादि तथैव च। भक्ष्यमाणं कृतं नूनं, मांस तुल्यं युधिष्ठिरः ।। हे युधिष्ठिर ! गोरस के साथ जिन पदार्थों की दो दालें होती हैं, उनके सेवन करने से मांस भक्षण के समान पाप लगता है।" एक बार भगवान विमलनाथ मथुरा पधारे, उससमय वहाँ राजा अनन्तवीर्य राज्य करता था। उसके 'मेरु' तथा 'मन्दर' नामक दो पुत्र थे। दोनों राजकुमार चरम शरीरी, धर्मरसिक और परस्पर अति स्नेहवान थे। मथुरापुरी में भगवान विमलनाथ के दर्शन से दोनों भाइयों को परम हर्ष हुआ। वे बारम्बार भगवान के समाधिमरण में जाकर उपदेश सुनते व आत्मध्यान करते थे। दिव्यध्वनि द्वारा श्रावक एवं मुनिधर्म का स्वरूप सुनकर दोनों भाइयों ने अपने परिणामों को अतिविशुद्ध बनाया। भगवान की वाणी में यह भी आया कि 'मेरु' और 'मन्दर' - दोनों भाई तद्भव मोक्षगामी हैं। यह जानकर दोनों भाइयों में अपार हर्ष हुआ तथा उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो जाने से अपने अनेक पूर्वभवों का ज्ञान भी हो गया।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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